साहित्य में काव्य को पढ़ने सुनने या उसपर आधारित अभिनय को देखने से जो आनंद प्राप्त होता है उसे रस कहते है.
रस
रस के भाग –
1. स्थायी भाव :- ह्रदय में जो भाव जीवन भर विद्यमान रहते है उन्हें स्थायी भाव कहते है यद्यपि ये सुप्त अवस्था में रहते है लेकिन किसी अवसर पर जागृत होकर ‘रस’ में बदल जाते है.
स्थायी भावो की संख्या 9 है, अतएव ‘रसो’ की संख्या भी 9 है जिन्हें ‘नवरस’ कहा जाता है.
‘वात्सल्य’ और ‘भक्ति’ रस बाद में स्वीकार किये गए है इनका भी स्थायी भाव ‘रति’ ही है.
श्रृंगार रस के 2 भेद है–
(i) संयोग श्रृंगार रस :- जिस रचना में नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है वहां संयोग श्रृंगार रस होता है.
3. करुण रस :- किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति के अनिष्ट होने पर उत्पन्न होने वाले शोक भाव को करुण रस कहते है.
4. वीर रस :- युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने से पूर्व हमारे ह्रदय में जागृत उत्साह को भावना को वीर रस कहते है.
5. रौद्र रस :- किसी अत्याचारी द्वारा किये गए अत्याचारों को देखकर हमारे मन में जो क्रोध की भावना उत्पन्न होती है उसे रौद्र रस कहते है.
6. भयानक रस :- किसी भयावह दृश्य/स्थिति को देखकर/सुनकर ह्रदय में उत्पन्न भय की भावना को भयानक रस कहते है.
7. वीभत्स रस :- पीव, हड्डी, दुर्गन्ध आदि को देखकर या अनुभव कर के जो घृणा या जुगुप्सा की भावना उत्पन्न होती है उसे वीभत्स रस कहते है.
9. शांत रस :- संसार व जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित में एक प्रकार को विराग उत्पन्न होता है जिससे उत्पन्न निर्वेद की भावना को शांत रस कहते है.
10. वात्सल्य रस :- छोटे बच्चो के प्रति ह्रदय में जो स्नेह (रति) की भावना उत्पन्न होती है उसे वात्सल्य रस कहते है.
11. भक्ति रस :- किसी कविता को पढ़ने से ईश्वर के प्रति उत्पन्न आस्था को भक्ति रस कहते है.
Note :-
- स्थायी भाव (प्रधान भाव)
- विभाव (कारण)
- अनुभाव (चेष्टाएँ)
- संचारी भाव (व्यभिचारी भाव)
1. स्थायी भाव :- ह्रदय में जो भाव जीवन भर विद्यमान रहते है उन्हें स्थायी भाव कहते है यद्यपि ये सुप्त अवस्था में रहते है लेकिन किसी अवसर पर जागृत होकर ‘रस’ में बदल जाते है.
स्थायी भावो की संख्या 9 है, अतएव ‘रसो’ की संख्या भी 9 है जिन्हें ‘नवरस’ कहा जाता है.
‘वात्सल्य’ और ‘भक्ति’ रस बाद में स्वीकार किये गए है इनका भी स्थायी भाव ‘रति’ ही है.
रस
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स्थायी भाव
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रस
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स्थायी भाव
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श्रृंगार रस
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रति
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भयानक रस
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भय
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हास्य रस
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हास
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वीभत्स रस
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जुगुप्सा/घृणा
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करुण रस
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शोक
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अदभुत रस
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विस्मय
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रौद्र रस
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क्रोध
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शांत रस
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निर्वेद
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वीर रस
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उत्साह
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2. विभाव :- जिसके कारण ह्रदय को रस प्राप्त होता है वह विभाव कहलाता है, अर्थात् स्थायी भाव का कारण विभाव होता है.
विभाव दो प्रकार के होता है –
A. आलंबन – (कोई भी सजीव - पुरुष/महिला)
- आश्रय आलंबन – जिसके मन में भाव उत्पन्न हो.
- विषय आलंबन – जिसके प्रति मन में भाव उत्पन्न हो.
B. उद्दीपन – (निर्जीव - सिंह गर्जन, वर्षा, जंगल की भयानकता)
3. अनुभाव :- स्थायी भाव के जागृत होने पर आश्रय की वाह्य चेष्टाओं को अनुभाव कहते है.
यदि किसी भौतिक परिस्थिति के कारण चेष्टाएँ दिखलाई पड़ती है तो उन्हें अनुभाव नहीं कहेंगे. जैसे :
- ठण्ड के कारण कांपना.
- गर्मी के कारण पसीना होना.
अनुभाव दो प्रकार के होते है –
A. सात्विक/अयत्नज अनुभाव :- यह 8 प्रकार की होती है-
स्तंभ – प्रसन्नता, लज्जा से शरीर की गति रुक जाना.
कम्प – काम, भय से शरीर कांप जाना.
स्वर भंग – हर्ष, शोक, भय से मुख से वचनों का न निकलना.
वैवर्ण्य – भय, शोक से शरीर का रंग उड़ जाना.
अश्रु – शोक, भय से आँखों में पानी आ जाना.
प्रलय – भय, शोक से इन्द्रियों की चेतना शून्य हो जाना.
स्वेद – भय, लज्जा, प्रेम के कारण पसीना आ जाना.
रोमांच – काम, भय, हर्ष से रोंगटे खड़े हो जाना.
ज्रिम्भा – जमुहाई (new)
B. कायिक/अत्नज अनुभाव :- जो चेष्टाएँ शरीर के अंगो के व्यापार के रूप में प्रकट होती है–
क्रोध में कठोर शब्द कहना
भय में भागना
रति में आलिंगन
4. संचारी भाव (व्यभिचारी भाव) :- आश्रय के ह्रदय में स्थायी भाव जागृत होने पर कुछ क्षणिक भाव बीच-बीच में उठते तथा विलीन होते रहते है, इनके द्वारा स्थायी भाव और भी तीव्र तथा संचरणशील हो जाता है.
इनकी संख्या 33 है–
1. हर्ष
2. विषाद
3. त्रास भय/व्यग्रता.
4. लज्जा ब्रीड़ा.
5. ग्लानि
6. चिंता
7. शंका
8. असूया दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता.
9. अमर्ष विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख.
10. मोह
11. गर्व
12. उत्सुकता
13. उग्रता
14. चपलता
15. दीनता
16. जड़ता
17. आवेग
18. निर्वेद अपने को कोसना या धिक्कारना.
19. घृति इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव.
20. मति
21. बिबोध चैतन्य लाभ.
22. वितर्क
23. श्रम
24. आलस्य
25. निद्रा
26. स्वप्न
27. स्मृति
28. मद
29. उन्माद
30. अवहित्था हर्ष आदि भावों को छिपाना.
31. अपस्मार मूर्च्छा.
32. व्याधि रोग.
33. मरण.
2. विषाद
3. त्रास भय/व्यग्रता.
4. लज्जा ब्रीड़ा.
5. ग्लानि
6. चिंता
7. शंका
8. असूया दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता.
9. अमर्ष विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख.
10. मोह
11. गर्व
12. उत्सुकता
13. उग्रता
14. चपलता
15. दीनता
16. जड़ता
17. आवेग
18. निर्वेद अपने को कोसना या धिक्कारना.
19. घृति इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव.
20. मति
21. बिबोध चैतन्य लाभ.
22. वितर्क
23. श्रम
24. आलस्य
25. निद्रा
26. स्वप्न
27. स्मृति
28. मद
29. उन्माद
30. अवहित्था हर्ष आदि भावों को छिपाना.
31. अपस्मार मूर्च्छा.
32. व्याधि रोग.
33. मरण.
1. श्रृंगार रस :- नायक नायिका के मन में स्थित स्थायी भाव (रति) से उत्पन्न आनंद को ‘श्रृंगार रस’ कहा जाता है. श्रृंगार रस को ‘रसराज/रसपति’ कहा जाता है.
श्रृंगार रस के 2 भेद है–
(i) संयोग श्रृंगार रस :- जिस रचना में नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है वहां संयोग श्रृंगार रस होता है.
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनु हँसे , दैन कहै , नटि जाय।।
(ii) वियोग श्रृंगार रस :- जहाँ नायक और नायिका के विरह या वियोग का वर्णन हो वहां वियोग श्रृंगार रस होता है.
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥
2. हास्य रस :- किसी की वेश-भूषा, वाणी को सुनकर तथा क्रियाकलाप को देखकर हमारे मन में जो हास की भावना उत्पन्न होती है उसे हास्य रस कहते है.
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।
देखि दशा हरि गन मुस्काहीं॥
3. करुण रस :- किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति के अनिष्ट होने पर उत्पन्न होने वाले शोक भाव को करुण रस कहते है.
दुःख ही जीवन की कथा रही।
क्या कहूँ आज जो नहीं कही।।
4. वीर रस :- युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने से पूर्व हमारे ह्रदय में जागृत उत्साह को भावना को वीर रस कहते है.
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी।
5. रौद्र रस :- किसी अत्याचारी द्वारा किये गए अत्याचारों को देखकर हमारे मन में जो क्रोध की भावना उत्पन्न होती है उसे रौद्र रस कहते है.
उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
6. भयानक रस :- किसी भयावह दृश्य/स्थिति को देखकर/सुनकर ह्रदय में उत्पन्न भय की भावना को भयानक रस कहते है.
बालधी बिसाल विकराल ज्वाल लाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है।
कैधों ब्योम वीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीररस वीर तरवारि सी उघारी है।
7. वीभत्स रस :- पीव, हड्डी, दुर्गन्ध आदि को देखकर या अनुभव कर के जो घृणा या जुगुप्सा की भावना उत्पन्न होती है उसे वीभत्स रस कहते है.
कहुँ धूम उठत बरति कहूँ चिता,
कहूँ होते रोर, कहूँ अर्थी धरि अहैं।
कहूँ हाड़ परों, कहूँ जरो, अधजरो माँस,
कहूँ गीध काग माँस नोचत पीर अहैं।।
8. अद्भुत रस :- किसी आश्चर्यजनक वस्तु को देखकर या कहानी को पढकर ह्रदय में उत्पन्न विस्मय को अद्भुत रस कहते है.
अखिल भुवन चर-अचर सब,
हरि-मुख में लखि मातु।
चकित भई गद -गद वचन,
विकसत दृग पुलकातु।।
9. शांत रस :- संसार व जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित में एक प्रकार को विराग उत्पन्न होता है जिससे उत्पन्न निर्वेद की भावना को शांत रस कहते है.
मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जायस छिन में
गरब करै क्यों इतना।
10. वात्सल्य रस :- छोटे बच्चो के प्रति ह्रदय में जो स्नेह (रति) की भावना उत्पन्न होती है उसे वात्सल्य रस कहते है.
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत॥
11. भक्ति रस :- किसी कविता को पढ़ने से ईश्वर के प्रति उत्पन्न आस्था को भक्ति रस कहते है.
उलटा नाम जपा जग जाना।
बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना॥
Note :-
1. बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि है – श्रृंगार रस.
2. ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’ वर्णों के प्रयोग का सम्बन्ध काव्य के किस गुण से है – ओज.
3. हिंदी साहित्य का नौवां रस है – शांत रस.
4. भरतमुनि के ‘रस सूत्र’ में किसका उल्लेख नहीं है – स्थायी भाव.
5. ‘वाक्यम् रसात्मकम काव्यं’ किसका कथन है – विश्वनाथ.
6. हिंदी काव्य में रसो को संख्या है – 9.
7. सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है – श्रृंगार रस.
8. स्थायी भावो की कुल संख्या कितनी है – 9.
9. संचारी भावो की कुल संख्या कितनी है – 33.
10. भरतमुनि के अनुसार रसो की संख्या है – 8.
11. अमर्ष क्या है – एक संचारी भाव.
12. ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति’ कथन है – भरतमुनि.
13. भरतमुनि ने ‘रससुत्र’ का वर्णन किया है – नाट्यशास्त्र में.
14. अनुभवों के कितने भेद होते है –
15. वियोग श्रृंगार रस में वियोग की कितनी दशा मानी गयी है – 10