शिक्षण विधियाँ शिक्षण प्रक्रिया की शुरुआत है, पाठ्यक्रम कितने अच्छे तरीके से समझाया जा सकता है इसका निर्धारण शिक्षण विधि द्वारा किया जाता है.
शिक्षण - विधि
1. व्याख्यान विधि (Lecture method)
2. आगमन व निगमन विधि (Inductive-Deductive method)
3. संश्लेषण एवं विश्लेषण विधि (Analytic-Synthetic method)
4. परियोजना विधि (Project method)
5. समस्या समाधान विधि (Problem solving method)
6. प्रश्नोत्तर विधि (Q&A method)
1. व्याख्यान विधि :- यह एक पारंपरिक शिक्षण विधि है जिसमे मुख्यतः भाषा (लिखित या मौखिक) के द्वारा आवश्यक सूचनाएं प्रदान की जाती है इसलिए इसे चाक और वार्ता (Chalk and talk) विधि भी कहा जाता है. इस विधि में शिक्षण एवं अधिगम मुख्यतः शिक्षक द्वारा बोले या लिखे गए शब्दों पर निर्भर करता है इसमे शिक्षक एक सक्रिय भूमिका में होता है और विद्यार्थी अपेक्षाकृत निष्क्रिय स्रोता होते है.
उदाहरण के लिए समुच्चय को परिभाषित करते हुए एक शिक्षक व्याख्या कर सकता है: “वस्तुओं के एक सुपरिभाषित समूह को समुच्चय कहते है अर्थात कोई भी समूह समुच्चय नहीं हो सकता है बल्कि सिर्फ वह समूह समुच्चय कहा जायेगा जिसमे उसके अवयव एक दुसरे से किसी निश्चित नियम से बंधे हो जैसे सम संख्याओं का समूह”
शिक्षण में व्याख्यान विधि का प्रयोग :
a. नए विषय-वस्तु की प्रस्तावना में.
b. अमूर्त अवधारणाओं की व्याख्या में.
c. वाद-विवाद का आरम्भ करने में.
d. अवधारणाओं के संक्षेपीकरण एवं पुनरावलोकन में.
e. व्याख्या करने, प्रमेय सिद्ध करने, जटिल समस्या को हल करने में.
व्याख्यान विधि के गुण :
a. छात्रो की संख्या आधिक होने पर व्याख्यान विधि का सिमित प्रयोग किया जा सकता है.
b. इस विधि से धन और समय की बचत होती है.
c. विषय वस्तु के प्रति रूचि जागृत करने में सहायक होती है.
व्याख्यान विधि के दोष :
a. यह विधि शिक्षक केन्द्रित है.
b. इस विधि से छात्रो में तार्किक चिंतन का विकास नहीं हो पाता है.
2. आगमन व निगमन विधि :- आगमन एवं निगमन विधि गणित एवं विज्ञान शिक्षण की महत्वपूर्ण विधि है.
आगमन विधि :- इस विधि में छात्र मूर्त से अमूर्त, विशिष्ट से सामान्य की ओर सिखते है. इस विधि में किसी समस्या को हल करने के लिए पहले से ज्ञात तथ्यों या नियमो का सहारा नहीं लिया जाता है बल्कि विद्यार्थियों को कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जाते है, जिससे वह अपनी सूझबूझ तथा तर्कशक्ति का प्रयोग करते हुए इन उदाहरणों के मूर्त तथ्यों का सामान्यीकरण करते हुए किसी नियम या सिद्धांत तक पहुंचते है. इस प्रकार यह विधि मूर्त उदाहरणों से कोई नियम या सिद्धांत निकालने की विधि है.
इस विधि में कई स्थितियों में किसी सत्य को प्रमाणित करके किसी नियम का प्रतिपादन किया जाता है.
जैसे : यदि हम विभिन्न प्रकार के त्रिभुज (समकोण, समद्विबाहु, समबाहु) के कोणों का योग लिखे तो हम पाते है की सभी प्रकार के त्रिभुज के कोणों का योग 180 है अतः सामान्यीकरण के रूप में हम कहते है की “किसी भी त्रिभुज में तीनो कोणों का योग 180 है.”
आगमन विधि के सोपान :
1. विशेष उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण
2. निरिक्षण.
3. सामान्यीकरण या सूत्रीकरण
4. परिक्षण या सत्यापन
आगमन विधि के गुण :
a. यह विधि तथ्यों एवं सूत्रों को समझने में अत्यंत सहायक है.
b. यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है क्योंकि इसमे छात्रो की रूचि आरंभ से अंत तक बनी रहती है.
c. यह एक छात्र केन्द्रित विधि है.
आगमन विधि के दोष :
a. अधिक परिश्रम और सूझ की आवश्यकता रहती है।
b. एक तरह से अपूर्ण विधि है, क्योंकि खोजे गये नियमों या तथ्यों की जांच के लिए निगमन विधि की जरूरत होती है।
c. बालक यदि किसी अशुद्ध नियम की प्राप्ति कर ले तो उसे सत्य को प्राप्त करनें में अधिक श्रम व समय की जरूरत होती है।
निगमन विधि :- यह विधि आगमन विधि के विपरीत है. इसमे हम सामान्य से विशिष्ट की ओर, अमूर्त से मूर्त की ओर चलते है. वस्तुतः यह आगमन विधि की पूरक है और इसका प्रयोग आगमन विधि से प्राप्त सिद्धांतो का सत्यापन करने में किया जाता है. निगमन विधि अत्यंत प्राचीन विधि है जिसमे गणितीय सिद्धांत को पहले स्वीकार कर लिया जाता है और बाद में विभिन्न उदाहरणों द्वारा उसकी पुष्टि की जाती है.
निगमन विधि के गुण :
a. संक्षिप्त और व्यावहारिक विधि है।
b. स्मरणशक्ति के विकास में सहायक है।
निगमन विधि के दोष :
a. छोटी कक्षाओं के लिए सर्वथा अनुपयुक्त विधि है. क्योंकि अमूर्त सिद्धांतो को समझना कठिन होता है.
b. यह स्मरण आधारित विधि है.
3. संश्लेषण एवं विश्लेषण विधि :
विश्लेषण विधि :- विश्लेषण शब्द का अर्थ है किसी वस्तु को उसके अवयवो में बांटकर उसका अध्ययन करना अर्थात दी गयी समस्या को उसके छोटे-छोटे अवयवो में बांटकर उसका अध्ययन करना. यह किसी समस्या का हल ढूंढने की उत्तम विधि है. इस विधि द्वारा ज्ञात की सहायता से अज्ञात का पता लगाया जाता है.
इसका प्रयोग रेखागणित में प्रमेय, निर्मेय आदि को सिद्ध करनें में प्रयुक्त होता है.
जैसे – पाइथागोरस का प्रयोग, कर्ण का वर्ग = आधार का वर्ग + लम्ब पर बना वर्ग
विश्लेषण विधि के गुण :
a. इसमे समस्या को छोटे छोटे अवयवो में बांटकर अध्ययन करते है जो समस्या की जटिलता को न्यून कर देता है.
b. यह विधि तार्किक चिंतन के विकास में सहायक होती है.
c. यह एक छात्र केन्द्रित विधि है.
विश्लेषण विधि के दोष :
a. इसमे श्रम अधिक लगता है.
b. यह सामान्य से कम बुद्धि वाले छात्रो के लिए कम उपयोगी है.
c. इस विधि से शुद्धता प्राप्त करना कठिन है.
संश्लेषण विधि :- यह विधि विश्लेषण विधि के बिलकुल विपरीत है, संश्लेषण शब्द का अर्थ है – अलग-अलग वस्तुओं या घटकों को एकत्र करने की प्रक्रिया है. इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ने में समस्या के अलग-अलग भागो को इकठ्ठा करते है और उन्हें एक अज्ञात भाग से जोड़ते है. इसमे सूचनाओ के ज्ञात भाग को इस प्रकार रखते है की उनसे कोई अज्ञात सूचना प्रकट हो सके यहाँ परिकलपना से निष्कर्ष की ओर बढ़ते है.
संश्लेषण विधि के गुण :
a. यह एक सरल एवं संक्षिप्त विधि है.
b. गणित के प्रसंगों को पढ़ने के लिए उपयुक्त विधि है.
संश्लेषण विधि के दोष :
a. यह विद्यार्थियों के जिज्ञासाओं का समाधान नहीं करता है.
b. इसमे छात्रो के खोज प्रवृत्ति का विकास नही हो पाता है.
5. परियोजना विधि :- इस विधि के जन्मदाता किलपैट्रिक है. यह विधि जॉन डीवी के प्रयोजनवाद(Pragmatic) के दर्शन पर आधारित है. यह एक छात्र केन्द्रित विधि है जिसके सहायता से सभी विषयों की शिक्षा दी जा सकती है.
प्रोजेक्ट, छात्रो के वास्तविक जीवन से सम्बंधित किसी समस्या का हल खोज निकालने के लिए किया जाने वाला वह सुनियोजित कार्य है जिसे प्राकृतिक रूप से सामाजिक वातावरण में पूरा किया जाता है. वस्तुतः परियोजना विधि कर के सिखने के सिद्धांत पर आधारित है.
परियोजना विधि के चरण :
a. समस्या का चयन/उपयुक्त परिस्थिति उत्पन्न करना.
b. परियोजना का चुनाव व उसके उद्देश्य के बारे में स्पष्ट ज्ञान.
c. परियोजना का व्यवस्थित कार्यक्रम बनाना.
d. योजनानुसार कार्य करना.
e. कार्य का मूल्यांकन करना.
f. सम्पूर्ण कार्य का आलेखन करना.
परियोजना/प्रोजेक्ट विधि के गुण :
a. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो पर आधारित है.
b. यह विधि पूर्णतः छात्र केन्द्रित है.
c. यह विधि छात्रो के खोज की प्रवृत्ति का विकास करता है.
d. इस विधि से छात्र अपने वास्तविक जीवन से सम्बंधित समस्याओं को सुलझाने का प्रशिक्षण लेते है.
परियोजना/प्रोजेक्ट विधि के दोष :
a. इस विधि से गणित शिक्षण में क्रमबद्ध ज्ञान देना संभव नहीं हो पाता है.
b. सभी विद्यार्थियों को पर्याप्त कार्य करने का अवसर नहीं मिल पाता है.
5. समस्या समाधान विधि :- यह एक मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक शिक्षण विधि है जिसमे छात्र को कर के सिखने का अवसर प्राप्त होता है. इस विधि में छात्रो को किसी दी हुई समस्या का हल खोजना होता है, जिसको वह कुछ निश्चित तार्किक चरणबद्ध क्रियाओं द्वारा ढूढता है. यह समस्या मानसिक या भौतिक हो सकती है.
समस्या समाधान विधि के चरण :
a. समस्या को पहचानना.
b. समस्या को परिभाषित करना.
c. सम्बद्ध आंकड़ो का संग्रहण.
d. आंकड़ो का विश्लेषण एवं अंतरिम हल.
e. सही समाधान प्राप्त करना.
f. प्राप्त परिणामो का सत्यापन.
उदाहरण : उस आयत की लम्बाई ज्ञात कीजिये जिसके विकर्ण की लम्बाई 5 सेमी और एक भुजा 3 सेमी है.
चरण i : समस्या की पहचान
- आयत का क्षेत्रफल ज्ञात करना.
चरण ii :समस्या को परिभाषित करना
- उस आयत का क्षेत्रफल निकलना जिसकी एक भुजा 3से मी और विकर्ण 5 सेमी है.
चरण iii : सम्बद्ध आंकड़ो का संग्रहण
- विकर्ण – 5 सेमी, भुजा – 3 सेमी.
चरण iv : आंकड़ो का विश्लेषण एवं अंतरिम हल :
- आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई x चौड़ाई.
- सभी कोण = 90.
- अन्य भुजा = 4 सेमी (पाइथागोरस प्रमेय).
- समाधान : 4 x 3 = 12 वर्ग सेमी
चरण v : सही समाधान प्राप्त करना
- चूँकि लम्बाई और चौड़ाई नकारात्मक नहीं हो सकते अतः सही हल = 12
चरण vi : प्राप्त परिणामो का सत्यापन
- आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई x चौड़ाई = 12 वर्ग सेमी
समस्या समाधान विधि के गुण :
a. यह दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने में भी सहायक है.
b. इससे छात्रो का आत्मविश्वास बढ़ता है.
c. यह छात्रो को पूर्वानुमान और तार्किक चिंतन करने को प्रोत्साहित करता है.
समस्या समाधान विधि के दोष :
a. यह विधि छोटी कक्षाओ के लिए अनुपयुक्त है.
6. प्रश्नोत्तर विधि :- इस विधि के जनक सुकरात को कहा जाता है. उन्होंने इसके 3 सोपान बताये है-
- निरिक्षण
- अनुभव
- परिक्षण
- कब
- क्यों
- कैसे
- कहाँ
- कौन
- क्या