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शब्द-विचार

एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते है।




शब्द - विचार

परिभाषा :- एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते है। जैसे-

एक वर्ण से निर्मित शब्द - न (नहीं), व (और).
अनेक वर्णों से निर्मित शब्द - कुत्ता, शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा.


शब्द-भेद

A. व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद हैं-
  • 1. रूढ़
  • 2. यौगिक
  • 3. योगरूढ़

1. रूढ़ :- जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं।

जैसे :- कल, पर, कमल, कलम, किताब आदि।

इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं। अतः ये निरर्थक हैं।

2. यौगिक :- जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों,वे यौगिक कहलाते हैं। 

जैसे :- 
  • देवालय=देव+आलय
  • राजपुरुष=राज+पुरुष
  • हिमालय=हिम+आलय
  • देवदूत=देव+दूत आदि।

ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं।

3. योगरूढ़ :- वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। 

जैसे :- पंकज, दशानन आदि। 

पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है।

 इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है।

B. उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-
  • 1. तत्सम
  • 2. तद्भव
  • 3. देशज
  • 4. विदेशी या विदेशज

1. तत्सम :- संस्कृत के वे शब्द जो बिना किसी परिवर्तन के हिंदी में प्रयोग किये जाते हैं, तत्सम कहलाते हैं। 

जैसे :- अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य आदि।

2. तद्भव :- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं।

जैसे :- आग (अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य) आदि।

3. देशज :- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार परिवर्तित होकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं।

जैसे :- पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि।

4. विदेशी या विदेशज :- विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं।

जैसे :- स्कूल, अनार, आम, कैंची, अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि।

ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है।

अंग्रेजी - कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि।

फारसी - अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।

अरबी - औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।

तुर्की - कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि।

पुर्तगाली - अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।

फ्रांसीसी - पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।

चीनी - तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।

यूनानी - टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।

जापानी - रिक्शा आदि।

C. प्रयोग के आधार पर शब्द के निम्नलिखित आठ भेद है-
  • 1. संज्ञा
  • 2. सर्वनाम
  • 3. विशेषण
  • 4. क्रिया
  • 5. क्रिया-विशेषण
  • 6. संबंधबोधक
  • 7. समुच्चयबोधक
  • 8. विस्मयादिबोधक

इन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है-
  • A. विकारी
  • B. अविकारी

A. विकारी शब्द :- जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं, इनकी संख्या 4 है।
1. संज्ञा, 2, सर्वनाम, 3. क्रिया. 4. विशेषण.

जैसे :-

संज्ञा - कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों.
सर्वनाम - मैं मुझे,हमें.
विशेषण - अच्छा, अच्छे.
क्रिया - खाता है, खाती है, खाते हैं.

इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।

B. अविकारी शब्द :- जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन के कारण कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं, इनकी संख्या 4 है.
1. क्रिया-विशेषण, 2. सम्बंधबोधक, 3.समुच्चयबोधक, 4. विस्यमादिबोधक. 

जैसे :- 

क्रिया-विशेषण - यहाँ.
संबंधबोधक - किन्तु.
समुच्चयबोधक-  और.
विस्मयादिबोधक - हे, अरे.

इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक हैं।


अर्थ की दृष्टि से शब्द के दो भेद हैं-
  • 1. सार्थक
  • 2. निरर्थक

1. सार्थक शब्द :- जिन शब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ हो वे शब्द सार्थक शब्द कहलाते हैं।

जैसे :- रोटी, पानी, ममता, डंडा आदि।

2. निरर्थक शब्द :- जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है वे शब्द निरर्थक कहलाते हैं।

जैसे :- रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा आदि इनमें वोटी, वानी, वंडा निरर्थक शब्द हैं।

विशेष- निरर्थक शब्दों पर व्याकरण में कोई विचार नहीं किया जाता है।





निपात :- निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। निपात वे अव्यय शब्द है जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एवं क्रिया-विशेषण के साथ प्रयुक्त होकर उस पर बल देने, उसे सिमित करने अथवा दूसरो के साथ मिलाने का काम करते है.

निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नही होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है।

जैसे :-

  • कुछ लोगो ने तो मार-पीट भी की.
  • वह घर जाता तो है.

निपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं-

प्रश्न- जैसे : क्या वह जा रहा है ?

अस्वीकृति- जैसे : मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं जायेगा।

विस्मयादिबोधक- जैसे : क्या अच्छी पुस्तक है !

वाक्य में किसी शब्द पर बल देना- बच्चा भी जानता है।

निपात नौ प्रकार के होते हैं-

1. स्वीकार्य निपात -
  • जैसे : हाँ, जी, जी हाँ।
2. नकारार्थक निपात -
  • जैसे : नहीं, जी नहीं।
3. निषेधात्मक निपात -
  • जैसे : मत।
4. प्रश्नबोधक निपात -
  • जैसे : क्या ? न।
5. विस्मयादिबोधक निपात -
  • जैसे : क्या, काश, काश कि।
6. बलदायक या सीमाबोधक निपात -
  • जैसे : तो, ही, तक, पर सिर्फ, केवल।
7. तुलनाबोधक निपात -
  • जैसे : सा।
8. अवधारणाबोधक निपात -
  • जैसे : ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
9. आदरबोधक निपात -
  • जैसे : जी।


          


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