जो शब्दांश किसी शब्द के अन्त में जुड़कर नवीन शब्द का निर्माण करके पहले शब्द के अर्थ में परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
कभी–कभी प्रत्यय लगाने पर भी शब्द के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
जैसे - बाल–बालक, मृदु–मृदुल।
प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश में संधि नहीं होती बल्कि शब्द के अन्तिम वर्ण में मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जाती है, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है, अर्थात शब्द में जुड़ने के बाद भी प्रत्यय अपने मूल रूप में रहता है -
जैसे -
कुछ प्रत्यय अपने मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन कर देते है :
1. ‘य’ प्रत्यय शब्द के अंतिम वर्ण को आधा कर देता है तथा मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन उपर्युक्त नियम (table) के अनुसार होता है -
2. ‘अ’ प्रत्यय शब्द के अंतिम वर्ण में आये ‘उ, ऊ’ को ‘अव’ में परिवर्तित कर देता है –
3. ‘इक’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
4. ‘एय’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
5. ‘इ’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
6. ‘आयन’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
शब्द–रचना में प्रत्यय कहीं पर अपूर्ण क्रिया, कहीं पर सम्बन्धवाचक और कहीं पर भाववाचक के लिये प्रयुक्त होते हैं-
मूलतः प्रत्यय के दो प्रकार है -
1. कृदन्त प्रत्यय :- जो प्रत्यय मूल धातुओं अर्थात् क्रिया पद के मूल स्वरूप के अन्त में जुड़कर नये शब्द का निर्माण करते हैं, उन्हें कृदन्त या कृत् प्रत्यय कहते हैं। धातु या क्रिया के अन्त में जुड़ने से बनने वाले शब्द संज्ञा या विशेषण होते हैं।
जैसे-
B. विशेषणवाचक कृदन्त :– जो प्रत्यय क्रियापद से विशेषण शब्द की रचना करते हैं, विशेषणवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
C. भाववाचक कृदन्त :– वे प्रत्यय जो क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैं, भाववाचक कृदन्त कहलाते हैं -
जैसे - गुरु, मनुष्य, चतुर, कवि शब्दों में क्रमशः त्व, ता, तर, ता प्रत्यय जोड़ने पर गुरुत्व, मनुष्यता, चतुरतर, कविता शब्द बनते हैं।
तद्धित प्रत्यय के छः भेद हैं –
A. भाववाचक तद्धित प्रत्यय :– भाववाचक तद्धित से भाव प्रकट होता है। इसमें प्रत्यय लगने पर कहीं–कहीं पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है -
B. सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय :– सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय से सम्बन्ध का बोध होता है। इसमें भी कहीं–कहीं पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है -
C. अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय :– इनसे अपत्य अर्थात् सन्तान या वंश में उत्पन्न हुए व्यक्ति का बोध होता है। अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय में भी कहीं–कहीं पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है -
D. पूर्णतावाचक तद्धित प्रत्यय :– इसमें संख्या की पूर्णता का बोध होता है -
E. तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय :– दो या दो से अधिक वस्तुओं में श्रेष्ठता बतलाने के लिए तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय लगता है -
F. गुणवाचक तद्धित प्रत्यय :– गुणवाचक तद्धित प्रत्यय से संज्ञा शब्द गुणवाची बन जाते हैं -
2. हिन्दी के प्रत्यय :- संस्कृत की तरह ही हिन्दी के भी अनेक प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। ये प्रत्यय यद्यपि कृदन्त और तद्धित की तरह जुड़ते हैं, परन्तु मूल शब्द हिन्दी के तद्भव या देशज होते हैं।
B. भाववाचक :– जिनसे किसी भाव का बोध होता है, भाववाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
C. सम्बन्धवाचक :– जिनसे सम्बन्ध का भाव व्यक्त होता है, वे सम्बन्धवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
D. लघुतावाचक :– जिनसे लघुता या न्यूनता का बोध होता है, वे लघुतावाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
E. गणनावाचक प्रत्यय :– जिनसे गणनावाचक संख्या का बोध है, वे गणनावाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
F. सादृश्यवाचक प्रत्यय :– जिनसे सादृश्य या समता का बोध होता है, उन्हे सादृश्यवाचक प्रत्यय कहते हैं -
G. गुणवाचक प्रत्यय :– जिनसे किसी गुण का बोध होता है, वे गुणवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
H. स्थानवाचक :– जिनसे स्थान का बोध होता है, वे स्थानवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
3. विदेशी प्रत्यय :- हिन्दी में उर्दू के ऐसे प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं, जो मूल रूप से अरबी और फारसी भाषा से अपनाये गये हैं -
प्रत्यय
जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पीछे या अन्त में जुड़कर नवीन शब्द का निर्माण करके पहले शब्द के अर्थ में परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
कभी–कभी प्रत्यय लगाने पर भी शब्द के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
जैसे - बाल–बालक, मृदु–मृदुल।
प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश में संधि नहीं होती बल्कि शब्द के अन्तिम वर्ण में मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जाती है, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है, अर्थात शब्द में जुड़ने के बाद भी प्रत्यय अपने मूल रूप में रहता है -
जैसे -
- राजनीति + इक = राजनीतिक
- (अतः प्रत्यय जुड़ने पर संधि नहीं होती है)
- नाटक+कार = नाटककार
महत्वपूर्ण नियम
कुछ प्रत्यय अपने मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन कर देते है :
यदि मूल शब्द के प्रथम वर्ण की मात्रा ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘ए’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ओ’ या ‘ऋ’ हो तथा उसके बाद प्रत्यय ‘इक’, ‘एय’, ‘य’, ‘इ’, ‘आयन’ या ‘अ’ आये तो प्रथम वर्ण में परिवर्तन निम्न नियम के अनुसार होता है-
मूल वर्ण |
परिवर्तित वर्ण
|
अ आ
|
आ
|
इ, ई, ए
|
ऐ
|
उ, ऊ, ओ
|
औ
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ऋ
|
आर्
|
1. ‘य’ प्रत्यय शब्द के अंतिम वर्ण को आधा कर देता है तथा मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन उपर्युक्त नियम (table) के अनुसार होता है -
- स्वतंत्र + य = स्वातंत्र्य
- वत्सल + य = वात्सल्य
- दिति + य = दैत्य
- गृहस्थ + य = गार्हस्थ्य
- उचित + य = औचित्य
- सुन्दर + य = सौंदर्य
- धीर + य = धैर्य
2. ‘अ’ प्रत्यय शब्द के अंतिम वर्ण में आये ‘उ, ऊ’ को ‘अव’ में परिवर्तित कर देता है –
- ऋषि + अ = आर्ष
- ऋतु + अ = आर्तव
- मधु + अ = माधव
- गुरु + अ = गौरव
- जिन + अ = जैन
- पुरुष + अ = पौरुष
3. ‘इक’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
- राजनीति + इक = राजनीतिक
- प्रमाण + इक = प्रामाणिक
- अध्यात्म + इक = आध्यात्मिक
- हृद + इक = हार्दिक
- मनस् + इक = मानसिक
- कुटुंब + इक = कौटुम्बिक
- निष्ठा + इक = नैष्ठिक
4. ‘एय’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
- गंगा + एय = गांगेय
- कुंती + एय = कौन्तेय
- राधा + एय = राधेय
- मृकंड + एय = मार्कंडेय
5. ‘इ’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
- सरथ + इ = सारथी
- वल्मीक + इ = वाल्मीकि
- पणिन् + इ = पाणिनि
6. ‘आयन’ प्रत्यय केवल मूल शब्द के पहले वर्ण की मात्रा में परिवर्तन (acc. to table) कर देता है –
- वत्स + य + आयन = वात्स्यायन
- नर + आयन = नारायण
- बदरी + आयन = बादरायण
शब्द–रचना में प्रत्यय कहीं पर अपूर्ण क्रिया, कहीं पर सम्बन्धवाचक और कहीं पर भाववाचक के लिये प्रयुक्त होते हैं-
- मानव + ईय = मानवीय
- लघु + ता = लघुता
- बूढ़ा + आपा = बुढ़ापा
प्रत्यय के प्रकार
- 1. कृत् प्रत्यय
- 2. तद्धित प्रत्यय
1. कृदन्त प्रत्यय :- जो प्रत्यय मूल धातुओं अर्थात् क्रिया पद के मूल स्वरूप के अन्त में जुड़कर नये शब्द का निर्माण करते हैं, उन्हें कृदन्त या कृत् प्रत्यय कहते हैं। धातु या क्रिया के अन्त में जुड़ने से बनने वाले शब्द संज्ञा या विशेषण होते हैं।
हिंदी में क्रिया के नाम के अंत का 'ना' हटा देने पर जो अंश बच जाता है, वही धातु है।
जैसे-
- कहना की कह्
- चलना की चल्
कृदन्त प्रत्यय के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं –
A. कर्त्तृवाचक कृदन्त :- वे प्रत्यय जो कर्तावाचक शब्द बनाते हैं, कर्त्तृवाचक कृदन्त कहलाते हैं -
- तृ (ता) – कर्त्ता, नेता, भ्राता, ध्याता.
- अक – पाठक, लेखक, विचारक.
- एरा – लुटेरा, संपेरा.
B. विशेषणवाचक कृदन्त :– जो प्रत्यय क्रियापद से विशेषण शब्द की रचना करते हैं, विशेषणवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- त – आगत, विगत, कृत।
- तव्य – कर्तव्य, गन्तव्य, ध्यातव्य।
- य – नृत्य, स्तुत्य, खाद्य, सौंदर्य।
- अनीय – पूजनीय, स्मरणीय, उल्लेखनीय।
- अन – लेखन, पठन, हवन, गमन।
- ति – गति, मति, रति।
- अ – जय, लाभ, लेख, विचार।
2. तद्धित प्रत्यय :- जो प्रत्यय क्रिया पदों (धातुओं) के अतिरिक्त मूल संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों के अन्त में जुड़कर नया शब्द बनाते हैं, उन्हे तद्धित प्रत्यय कहते हैं।
जैसे - गुरु, मनुष्य, चतुर, कवि शब्दों में क्रमशः त्व, ता, तर, ता प्रत्यय जोड़ने पर गुरुत्व, मनुष्यता, चतुरतर, कविता शब्द बनते हैं।
- अव – लाघव, गौरव।
- त्व – महत्त्व, गुरुत्व, लघुत्व।
- इमा – महिमा, गरिमा, लघिमा, लालिमा।
- य – पांडित्य, धैर्य, माधुर्य, सौन्दर्य।
B. सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय :– सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय से सम्बन्ध का बोध होता है। इसमें भी कहीं–कहीं पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है -
- अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव।
- इक – लौकिक, धार्मिक, वार्षिक, ऐतिहासिक।
- इम – स्वर्णिम, अन्तिम, रक्तिम।
- ईय – भारतीय, प्रान्तीय, नाटकीय, भवदीय।
- य – ग्राम्य, काम्य, हास्य, भव्य।
C. अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय :– इनसे अपत्य अर्थात् सन्तान या वंश में उत्पन्न हुए व्यक्ति का बोध होता है। अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय में भी कहीं–कहीं पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है -
- अ – पार्थ, पाण्डव, माधव, राघव, भार्गव।
- इ – दाशरथि, मारुति, सौमित्र।
- य – गालव्य, पौलस्त्य, शाक्य, गार्ग्य।
- एय – वार्ष्णेय, कौन्तेय, गांगेय, राधेय।
D. पूर्णतावाचक तद्धित प्रत्यय :– इसमें संख्या की पूर्णता का बोध होता है -
- म – प्रथम, पंचम, सप्तम, नवम, दशम।
- थ/ठ – चतुर्थ, षष्ठ।
- तीय – द्वितीय, तृतीय।
E. तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय :– दो या दो से अधिक वस्तुओं में श्रेष्ठता बतलाने के लिए तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय लगता है -
- तर – अधिकतर, गुरुतर, लघुतर।
- तम – सुन्दरतम, अधिकतम, लघुतम।
- ईय – गरीय, वरीय, लघीय।
- इष्ठ – गरिष्ठ, वरिष्ठ, कनिष्ठ।
F. गुणवाचक तद्धित प्रत्यय :– गुणवाचक तद्धित प्रत्यय से संज्ञा शब्द गुणवाची बन जाते हैं -
- वान् – धनवान्, विद्वान्, बलवान्।
- मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्, गतिमान्, आयुष्मान्।
- त्य – पाश्चात्य, पौर्वात्य।
- ई – क्रोधी, धनी, लोभी, गुणी।
2. हिन्दी के प्रत्यय :- संस्कृत की तरह ही हिन्दी के भी अनेक प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। ये प्रत्यय यद्यपि कृदन्त और तद्धित की तरह जुड़ते हैं, परन्तु मूल शब्द हिन्दी के तद्भव या देशज होते हैं।
हिन्दी के सभी प्रत्ययों को निम्न वर्गो में सम्मिलित किया जाता है -
A. कर्त्तृवाचक :– जिनसे किसी कार्य के करने वाले का बोध होता है, वे कर्त्तृवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- आर – सुनार, लोहार, चमार, कुम्हार।
- एरा – सपेरा, लुटेरा, कसेरा, लखेरा।
- वाला – घरवाला, ताँगेवाला, झाड़ूवाला।
- अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़।
B. भाववाचक :– जिनसे किसी भाव का बोध होता है, भाववाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- आ – प्यासा, भूखा, रुखा, लेखा।
- आई – मिठाई, रंगाई, सिलाई, भलाई।
- आहट – चिकनाहट, कड़वाहट, घबड़ाहट।
- ई – गर्मी, सर्दी, मजदूरी, गरीबी, खेती।
C. सम्बन्धवाचक :– जिनसे सम्बन्ध का भाव व्यक्त होता है, वे सम्बन्धवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- आड़ी – खिलाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी।
- एरा – चचेरा, ममेरा, मौसेरा, फुफेरा।
- आल – ननिहाल, ससुराल।
D. लघुतावाचक :– जिनसे लघुता या न्यूनता का बोध होता है, वे लघुतावाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- ई – रस्सी, कटोरी, टोकरी।
- इया – खटिया, डिबिया, पुड़िया।
- ड़ी – टुकड़ी, पगड़ी।
E. गणनावाचक प्रत्यय :– जिनसे गणनावाचक संख्या का बोध है, वे गणनावाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- रा – दूसरा, तीसरा।
- वाँ – पाँचवाँ, दसवाँ, सातवाँ।
- हरा – इकहरा, दुहरा, तिहरा।
F. सादृश्यवाचक प्रत्यय :– जिनसे सादृश्य या समता का बोध होता है, उन्हे सादृश्यवाचक प्रत्यय कहते हैं -
- सा – मुझ–सा, नीला–सा, चाँद–सा।
- हरा – दुहरा, तिहरा, चौहरा।
G. गुणवाचक प्रत्यय :– जिनसे किसी गुण का बोध होता है, वे गुणवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- आ – मीठा, ठंडा, प्यासा, भूखा, प्यारा।
- ता – मूर्खता, लघुता, कठोरता, मृदुता।
H. स्थानवाचक :– जिनसे स्थान का बोध होता है, वे स्थानवाचक प्रत्यय कहलाते हैं -
- ई – पंजाबी, गुजराती, मराठी, बनारसी।
- आना – हरियाना, राजपूताना, तेलंगाना।
3. विदेशी प्रत्यय :- हिन्दी में उर्दू के ऐसे प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं, जो मूल रूप से अरबी और फारसी भाषा से अपनाये गये हैं -
- आबाद – अहमदाबाद, इलाहाबाद।
- दार –दूकानदार, जमीँदार।
- वान – कोचवान, बागवान।