सार्थक शब्दो के उस समूह को जिसके द्वारा एक अर्थ या एक पूर्ण भाव की अभिव्यक्ति होती है, वाक्य कहते है।
वाक्य - विचार
वाक्य :– सार्थक शब्दो के उस समूह को वाक्य कहते है, जिसके द्वारा एक अर्थ या एक पूर्ण भाव की
अभिव्यक्ति होती है। वाक्य सार्थक शब्दो का व्यवस्थित रूप है।
वाक्य एक या एक से अधिक शब्दों का भी हो सकता है। भाषा की इकाई वाक्य है। छोटा बालक चाहे वह एक शब्द ही बोलता हो, उसका अर्थ निकलता है, तो वह वाक्य है। वाक्य–रचना में प्रयुक्त सार्थक पदों के समूह में परस्पर योग्यता, आकांक्षा और आसक्ति या निकटता का होना जरूरी है, तभी वह सार्थक पद–समूह वाक्य कहलाता है।
वाक्य की परिभाषाएँ–
पतंजलि :- “पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द–समूह को वाक्य कहते हैं।”
प्रो॰ देवेन्द्रनाथ शर्मा :- “भाषा की न्यूनतम पूर्ण सार्थक इकाई वाक्य है।”
वाक्य के अंग
वाक्य - विन्यास करते समय जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे मुख्य रूप से दो भागोँ में विभक्त रहते हैं, इसलिए वाक्य के दो अंग या घटक माने जाते हैं–
- I. उद्देश्य
- II. विधेय
I. उद्देश्य :- वाक्य में जिस व्यक्ति या वस्तु के सम्बन्ध में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं। अतः काम के करने वाले (कर्त्ता) को उद्देश्य कहते हैं। उद्देश्य प्रायः संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्द होते हैं, कहीं पर क्रियार्थक शब्द भी उद्देश्य अंश बन जाता है।
जैसे :–
- रमेश गाँव जाएगा।
- अभिमानी का सर्वत्र आदर नहीं होता।
- घूमना स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है।
प्रथम वाक्य में, गाँव जाने का कार्य ‘रमेश’ कर रहा है। अतः रमेश उद्देश्य है।
द्वितीय वाक्य में, अभिमानी का आदर न होना वर्णित है, इसमें ‘अभिमानी’ विशेषण–पद उद्देश्य है।
तृतीय वाक्य में, ‘घूमना’ क्रियार्थक शब्द है, जो कि वाक्य में उद्देश्य अंश की तरह प्रयुक्त है।
उद्देश्य का विस्तारक :– वाक्य में उद्देश्य अर्थात् कर्त्ता के साथ जो शब्द उसके विशेषण रूप में प्रयुक्त होते हैं, वे उद्देश्य के विस्तारक या पूरक कहलाते हैं।
जैसे :– लोभी व्यक्ति दुःखी रहता है।
इस वाक्य में ‘लोभी’ शब्द ‘व्यक्ति’ का विशेषण है, इसलिए यह कर्त्ता अर्थात् ‘व्यक्ति’ का पूरक–पद है।
इस प्रकार उद्देश्य के अन्तर्गत कर्त्ता और कर्त्ता का विस्तार दोनों आते हैं।
उद्देश्य-विस्तारक में निम्न प्रकार के शब्द हो सकते हैं–
जैसे :– रमेश की घड़ी चोरी चली गई. वाक्य में ‘रमेश की’।
सार्वनामिक विशेषण :-
जैसे :– वह बालक चला गया, वाक्य में ‘वह’।
विशेष! :-
जैसे :– अच्छा लड़का प्यारा लगता है, वाक्य में ‘अच्छा’।
कृदन्त (सम्बन्ध कारक के रूप में) :-
जैसे :– मेरा लिखा हुआ पत्र कहाँ है?, वाक्य में ‘लिखा हुआ’।
कृदन्त का विशेषण :-
जैसे :– अधिक खेलना अच्छा नहीं होता, वाक्य में ‘अधिक’।
समानाधिकरण शब्द (समानार्थी) का अर्थ स्पष्ट करने वाला शब्द :-
जैसे :– गोपाल का भाई सत्यपाल पास हो गया, वाक्य में ‘गोपाल का भाई’।
II. विधेय :- वाक्य में उद्देश्य के सम्बन्ध में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं। वाक्य में क्रिया और उसका पूरक विधेय होता है।
जैसे :-
जैसे :-
- आदमी जा रहा था।
- वह पढ़ते–पढ़ते सो गया।
- गीता लिखती है।
इन वाक्यों में ‘जा रहा था’, ‘सो गया’ और ‘लिखती है’ विधेय अंश हैं, इनसे उद्देश्य के कार्य का ज्ञान होता है।
विधेय का विस्तारक :- वाक्य में क्रिया की विशेषता बताने वाले पदों को विधेय का विस्तारक कहते हैं। कभी–कभी क्रिया के विस्तारक के साथ कुछ पूरक–पद भी आते हैं, जो कि कर्त्ता कारक को छोड़कर अन्य विभक्तियोँ के होते हैं। उनको भी विधेय के पूरक एवं विस्तारक भाग में रखा जाता है।
जैसे :- ‘पुस्तक मेज के ऊपर रखी है।’
जैसे :- ‘पुस्तक मेज के ऊपर रखी है।’
इस वाक्य में ‘रखी है’ विधेय है तथा ‘मेज के ऊपर’ विधेय का पूरक या विस्तारक है।
विधेय–विस्तारक में निम्न प्रकार के शब्द हो सकते हैं–
जैसे :– मुरली कल चला गया, वाक्य में ‘कल’।
संज्ञा अथवा सर्वनाम (करण, अपादाना या अधिकरण कारक के रूप में) :-
जैसे :– मैं कलम से लिख रहा हूँ, वाक्य में ‘कलम से’।
कृदन्त :-
जैसे :– दौड़ता हुआ गया, वाक्य में ‘दौड़ता हुआ’।
अकर्मक क्रिया का पूरक शब्द :-
जैसे :– वह फल खराब हो गया, वाक्य में ‘खराब’।
सकर्मक क्रिया का कर्म :-
जैसे :– साधना ने पुस्तक पढ़ ली, वाक्य में ‘पुस्तक’।
सकर्मक क्रिया के कर्म का पूरक :-
जैसे– राम ने सुग्रीव को मित्र बनाया, वाक्य में ‘मित्र’।
सम्प्रदान कारक :-
जैसे :– मैं सरोज के लिए मिठाई लाया, वाक्य में ‘सरोज के लिए’।
वाक्य और उपवाक्य
वाक्य :- वाक्य उस शब्द–समूह को कहते हैं जिसमें कर्त्ता और क्रिया दोनों होते हैं।
जैसे :– मोहन खेलता है।
इसमें मोहन कर्त्ता, और खेलता है– क्रिया है।
इस वाक्य से पूरा अर्थ–बोध होता है। अतः यह एक वाक्य है।
जैसे :- मोहन ने कहा कि मैं खेलूँगा।
इसमें ‘मोहन ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं खेलूँगा’ उपवाक्य। उपवाक्य, वाक्य का भाग होता है, जिसका अपना अर्थ होता है और जिसमें उद्देश्य और विधेय भी होते हैं।
उपवाक्यों के आरम्भ में अधिकतर कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्योँ–ज्योँ, चूँकि, क्योँकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ, इत्यादि होते हैं।
उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं–
1. संज्ञा उपवाक्य :- जो आश्रित उपवाक्य संज्ञा की तरह व्यवहृत हो, उसे संज्ञा उपवाक्य कहते हैं। इस उपवाक्य के पूर्व प्रायः ‘कि’ होता है।
जैसे :– राम ने कहा कि मैं खेलूँगा।
यहाँ ‘मैं खेलूँगा’ संज्ञा उपवाक्य है।
2. विशेषण उपवाक्य :- जो आश्रित उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहार में आये, उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं।
जैसे :– जो आदमी कल आया था, आज भी आया है।
यहाँ ‘जो कल आया था’ विशेषण उपवाक्य है। इसमें जो, जैसा, जितना इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
जैसे :– जो आदमी कल आया था, आज भी आया है।
यहाँ ‘जो कल आया था’ विशेषण उपवाक्य है। इसमें जो, जैसा, जितना इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
3. क्रियाविशेषण उपवाक्य :- जो उपवाक्य क्रिया विशेषण की तरह व्यवहार में आये, उसे क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते हैं।
जैसे :– जब पानी बरसता है, तब मेंढक बोलते हैं।
यहाँ ‘जब पानी बरसता है’ क्रिया विशेषण उपवाक्य है। इसमें प्रायः जब, जहाँ, जिधर, ज्योँ, यद्यपि इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
जैसे :– जब पानी बरसता है, तब मेंढक बोलते हैं।
यहाँ ‘जब पानी बरसता है’ क्रिया विशेषण उपवाक्य है। इसमें प्रायः जब, जहाँ, जिधर, ज्योँ, यद्यपि इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
वाक्य के भेद
वाक्य के भेद निम्नांकित तीन आधार पर किए जाते हैं–
- 1. रचना के आधार पर
- 2. अर्थ के आधार पर
- 3. क्रिया के आधार पर
रचना के आधार पर वाक्य के भेद
रचना के आधार पर वाक्य के 3 भेद होते है -
- A. सरल वाक्य
- B. मिश्र वाक्य
- C. संयुक्त वाक्य
जैसे :-
- बिजली चमकती है।
- पानी बरस रहा है।
- सूर्य निकल रहा है।
- वह पुस्तक पढ़ता है।
- छात्र मैदान में खेल रहे हैं।
इन वाक्यों में एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय है अतः ये सरल या साधारण वाक्य हैं।
जैसे :-
- वह कौन–सा मनुष्य है जिसने महाप्रतापी राजा भोज का नाम न सुना हो।
इस वाक्य में ‘वह कौन–सा मनुष्य है’ मुख्य वाक्य है और शेष सहायक वाक्य क्योँकि वह मुख्य वाक्य पर आश्रित है।
अन्य उदाहरण :–
- मालिक ने कहा कि कल छुट्टी रहेगी।
- मोहन लाल, जो श्याम गली में रहता है, मेरा मित्र है।
- ऊँट ही एक ऐसा पशु है जो कई दिनोँ तक प्यासा रह सकता है।
- यह वही भारत देश है जिसे पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था।
आश्रित उपवाक्य (गौण उपवाक्य) :–
मिश्र वाक्य में आने वाले आश्रित (गौण) उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं–
(1) संज्ञा उपवाक्य :- जो अपने प्रधान उपवाक्य में प्रयुक्त उद्देश्य का, क्रिया का, कर्म या पूरक का समानाधिकरण होता है, उसे संज्ञा उपवाक्य कहते हैं। प्रायः संज्ञा उपवाक्य समुच्चय बोधक अव्यय ‘कि’ से जुड़ा रहता है।
जैसे :-
जैसे :-
- हमारा विश्वास था कि भारत मैच जीत लेगा।
- मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है।
- वकील ने फटकारते हुए कहा कि वह झूठा है।
विशेष—उद्धरण चिह्नोँ में बंद उपवाक्य भी संज्ञा उपवाक्य होते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- सुषमा ने कहा, “आज मेरा जन्म दिन है।”
- विद्यार्थी ने कहा, “मैं विद्यालय जाऊँगा।”
(2) विशेषण उपवाक्य :- जो अपने प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताता है, उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- जो बात सुनो उसे समझो।
- यह वही छात्र है, जो मेरे स्कूल में पढ़ता था।
इनमें ‘जो’, ‘उसे’ तथा ‘यह’ शब्द दोनों उपवाक्यों को जोड़ रहे हैं तथा सर्वनाम की विशेषता बता रहे हैं।
(3) क्रियाविशेषण उपवाक्य :- जो अपने प्रधान उपवाक्य के क्रिया शब्द की विशेषता बताता है या क्रियाविशेषण का समानाधिकरण होता है, उसे क्रियाविशेषण उपवाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- जब–जब वर्षा होगी, तब–तब हरियाली फैलेगी।
- यदि वह पढ़ेगा नहीं, तो उत्तीर्ण कैसे होगा?
इन वाक्यों में जब–जब, तब–तब, यदि, तो - क्रिया-विशेषण की तरह प्रयुक्त होकर प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बता रहे हैं।
समानाधिकरण उपवाक्य :- जो उपवाक्य प्रधान उपवाक्य या आश्रित उपवाक्य के समान अधिकरण वाला हो, अर्थात् एक पूर्ण वाक्य में दो उपवाक्य हों और दोनों ही प्रधान हों, उसे समानाधिकरण उपवाक्य कहते हैं। इन उपवाक्यों में संयोजक अव्यय शब्दों का प्रयोग होता है।
जैसे :–
जैसे :–
- रामदीन निर्धन है, किन्तु है परिश्रमी।
- बुरी संगति मत करो, वरना बाद में पछताओगे।
C. संयुक्त वाक्य :- जिस वाक्य में एक से अधिक साधारण या मिश्र वाक्य हों और वे किसी संयोजक अव्यय (किन्तु, परन्तु, बल्कि, और, अथवा, तथा, फिर भी, अन्यथा, इसलिए, फिर भी आदि) द्वारा जुड़े हों, तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- राम पढ़ रहा था परन्तु रमेश सो रहा था।
- शीला खेलने गई और रीता नहीं गई।
- समय बहुत खराब है इसलिए सावधान रहना चाहिए।
इन वाक्यों में ‘परन्तु’, ‘और’ व‘इसलिए’ अव्यय पदों के द्वारा दोनों साधारण वाक्यों को जोड़ा गया है। यदि ऐसे वाक्यों में से इन योजक अव्यय शब्दों को हटा दिया जाए तो प्रत्येक वाक्य में दो–दो स्वतंत्र वाक्य बनते हैं। इसी कारण इन्हेँ संयुक्त या जुड़े हुए वाक्य कहते हैं।
अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद
अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं–
- A. विधिवाचक
- B. निषेधवाचक
- C. आज्ञावाचक
- D. प्रश्नवाचक
- E. विस्मयबोधक
- F. संदेह बोधक
- G. इच्छावाचक
- H. संकेत वाचक
A. विधिवाचक :- जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने का सामान्य कथन हो और ऐसे वाक्यों में किसी काम के होने या किसी के अस्तित्व का बोध होता हो, उन्हेँ विधिवाचक या विधानवाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
- सूर्य गर्मी देता है।
- हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है।
- भारत हमारा देश है।
- वह बालक है।
- हिमालय भारत के उत्तर दिशा में स्थित है।
उक्त वाक्यों में सूर्य का गर्मी देना, हिन्दी का राष्ट्र भाषा होना आदि कार्य हो रहे हैं और किसी के (देश तथा बालक) होने का बोध हो रहा है। अतः ये विधिवाचक वाक्य हैं।
B. निषेधवाचक :- जिन वाक्यों में कार्य के निषेध (न होने) का बोध होता हो, उन्हेँ निषेधवाचक वाक्य अथवा नकारात्मक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
- मैं वहाँ नहीं जाऊँगा।
- वे यह कार्य नहीं जानते हैं।
- बसन्ती नहीं नाचेगी।
- आज हिन्दी अध्यापक ने कक्षा नहीं ली।
उक्त सभी वाक्यों में क्रिया सम्पन्न नहीं होने के कारण ये निषेधवाचक वाक्य हैं।
C. आज्ञावाचक :– जिन वाक्यों से आदेश या आज्ञा या अनुमति का बोध हो, उन्हेँ आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
- तुम वहाँ जाओ।
- यह पाठ तुम पढ़ो।
- अपना–अपना काम करो।
- आप चुप रहिए।
- मैं घर जाऊँ।
- तुम पानी लाओ।
D. प्रश्नवाचक :- जिन वाक्यों में कोई प्रश्न किया जाये या किसी से कोई बात पूछी जाये, उन्हेँ प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- तुम्हारा क्या नाम है?
- तुम पढ़ने कब जाओगे?
- वे कहाँ गए हैं?
- क्या तुम मेरे साथ गाओगे?
E. विस्मयबोधक :- जिन वाक्यों में आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हों, उन्हेँ विस्मयबोधक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- अरे! इतनी लम्बी रेलगाड़ी!
- ओह! बड़ा जुल्म हुआ!
- छिः! कितना गन्दा दृश्य!
- शाबाश! बहुत अच्छे!
उक्त वाक्यों में आश्चर्य (अरे), दुःख (ओह), घृणा (छिः), हर्ष (शाबाश) आदि भाव व्यक्त किए गए हैं अतः ये विस्मयबोधक वाक्य हैं।
F. संदेह बोधक :- जिन वाक्यों में कार्य के होने में सन्देह अथवा सम्भावना का बोध हो, उन्हेँ संदेह वाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- सम्भवतः वह सुधर जाय।
- शायद मैं कल बाहर जाऊँ।
- आज वर्षा हो सकती है।
- शायद वह मान जाए।
उक्त वाक्यों में कार्य के होने में अनिश्चितता व्यक्त हो रही है अतः ये संदेह वाचक वाक्य हैं।
G. इच्छावाचक :- जिन वाक्यों में वक्ता की किसी इच्छा, आशा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हेँ इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- भगवान तुम्हे दीर्घायु करे।
- नववर्ष मंगलमय हो।
- ईश्वर करे, सब कुशल लौटे।
- दूधो नहाओ, पूतो फलो।
- कल्याण हो।
इन वाक्यों में वक्ता ईश्वर से दीर्घायु, नववर्ष के मंगलमय, सबकी सकुशल वापसी और पशुधन व पुत्र धन की कामना व आशीष दे रहा है अतः ये इच्छावाचक वाक्य हैं।
H. संकेत वाचक :- जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, उन्हेँ संकेत वाचक या हेतुवाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे :–
जैसे :–
- वर्षा होती तो फसल अच्छी होती।
- आप आते तो इतनी परेशानी नहीं होती।
- जो पढ़ेगा वह उत्तीर्ण होगा।
- यदि छुट्टियाँ हुईँ तो हम कश्मीर अवश्य जाएँगे।
इन वाक्यों में कारण व शर्त का बोध हुआ है इसलिए ऐसे सभी वाक्य संकेत वाचक वाक्य कहलाते हैं।
क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद
क्रिया के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं–
- A. कर्तृप्रधान वाक्य (कर्तृवाच्य)
- B. कर्मप्रधान वाक्य (कर्मवाच्य)
- C. भावप्रधान वाक्य (भाववाच्य)
A. कर्तृप्रधान वाक्य (कर्तृवाच्य) :- ऐसे वाक्यों में क्रिया कर्त्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होती है।
जैसे :–
- बालक पुस्तक पढ़ता है।
- बच्चे खेल रहे हैं।
B. कर्मप्रधान वाक्य (कर्मवाच्य) :- इन वाक्यों में क्रिया कर्म के अनुसार होती है तथा क्रिया के लिँग, वचन कर्म के अनुसार होते हैं। क्रिया सकर्मक होती है।
जैसे :–
जैसे :–
- बालको द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।
- यह पुस्तक मेरे द्वारा लिखी गई।
C. भावप्रधान वाक्य (भाववाच्य) :- ऐसे वाक्यों में कर्म नहीं होता तथा क्रिया सदा अकर्मक, एकवचन, पुल्लिंग तथा अन्यपुरुष में प्रयोग की जाती है। इनमें भाव (क्रिया) की प्रधानता रहती है।
जैसे–
जैसे–
- मुझसे अब नहीं चला जाता।
- यहाँ कैसे बैठा जाएगा।
वाक्य–विश्लेषण
रचना या संगठन की दृष्टि से जो तीन प्रकार (सरल, मिश्र व संयुक्त) के वाक्य माने जाते हैं, उनका विश्लेषण या भेद आदि का निर्देश करना वाक्य–विश्लेषण कहलाता है।
वाक्य–विश्लेषण में वाक्य के अंगो को अलग–अलग किया जाता है। वाक्य–विश्लेषण को वाक्य–विग्रह, वाक्य–पृथक्करण या वाक्य–विच्छेद भी कहते हैं।
सरल (साधारण) वाक्य का विश्लेषण :–
सरल वाक्य के विश्लेषण में निम्नांकित बातेँ लिखी जाती हैं–
(1) उद्देश्य :–
- साधारण उद्देश्य (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या कृदन्त)।
- उद्देश्य विस्तारक।
(2) विधेय :–
- साधारण विधेय (क्रिया)।
- विधेय–विस्तारक या पूरक।
उदाहरण :–
- रमेश गाँव जाएगा।
(क) रमेश—उद्देश्य।
(ख) गाँव—उद्देश्य विस्तारक।
(ग) जाएगा—विधेय।
मिश्र वाक्य का विश्लेषण :–
मिश्र वाक्य के विश्लेषण में निम्नांकित बातेँ दी जाती हैं–
(1) उपवाक्य।
(2) उपवाक्य के भेद।
(3) जोड़ने वाला शब्द (संयोजक अव्यय)।
(4) प्रत्येक उपवाक्य का साधारण वाक्य की भाँति विश्लेषण।
उदाहरण :–
- तुम इस पुस्तक को जहाँ चाहो वहाँ रखो।
(क) तुम इस पुस्तक को वहाँ रखो—प्रधान वाक्य।
(ख) जहाँ (तुम) चाहो—क्रिया विशेषण उपवाक्य।
(ग) प्रधान उपवाक्य ‘(क)’ के स्थानवाचक क्रिया विशेषण ‘वहाँ’ का समानाधिकरण।
(घ) पूरा वाक्य मिश्र वाक्य है।
- जो परिश्रम करेगा वह अवश्य पास होगा।
(क) वह अवश्य पास होगा—प्रधान उपवाक्य।
(ख) जो परिश्रम करेगा—विशेषण उपवाक्य।
(ग) प्रधान उपवाक्य (क) के वह सर्वनाम का विशेषण।
(घ) स्थानवाचक क्रिया विशेषण ‘वह’ का समानाधिकरण।
(ङ) पूरा वाक्य मिश्र वाक्य है।
संयुक्त वाक्य का विश्लेषण :–
संयुक्त वाक्य के विश्लेषण में निम्नलिखित बातेँ आती हैं–
(1) प्रधान उपवाक्य।
(2) समानाधिकरण उपवाक्य।
(3) जोड़ने वाला शब्द (संयोजक अव्यय)।
(4) प्रत्येक वाक्य का साधारण वाक्य की भाँति विश्लेषण।
उदाहरण :–
- मुरारी चतुर है और गोपाल मूर्ख है।
(क) मुरारी चतुर है—प्रधान उपवाक्य।
(ख) गोपाल मूर्ख है—समानाधिकरण उपवाक्य जोड़ने वाला शब्द। और पूरा वाक्य संयुक्त वाक्य है।
- रमेश घर चला गया अथवा बाजार।
(क) रमेश घर चला गया—प्रधान उपवाक्य।
(ख) (रमेश) बाजार (चला गया)—समानाधिकरण उपवाक्य, जोड़ने वाला शब्द ‘अथवा’।
(ग) पूरा वाक्य संयुक्त वाक्य है।