सामान्य अर्थ का बोध न कराकर विशेष अथवा विलक्षण अर्थ का बोध कराने वाले पदबन्ध को मुहावरा कहते है। इन्हे वाग्धारा भी कहते है। इनके अंत में प्रायः ‘ना’ लगा होता है.
मुहावरा
मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है, जो रचना में अपना विशेष अर्थ प्रकट करता है। रचना में भावगत सौन्दर्य की दृष्टि से मुहावरो का विशेष महत्त्व है। इनके प्रयोग से भाषा सरस, रोचक एवं प्रभावपूर्ण बन जाती है। इनके मूल रूप में कभी परिवर्तन नही होता अर्थात् इनमें से किसी भी शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त नही किया जा सकता। हाँ, क्रिया पद में काल, पुरुष, वचन आदि के अनुसार परिवर्तन अवश्य होता है।
मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। मुहावरे के प्रयोग से वाक्य में व्यंग्यार्थ उत्पन्न होता है। अतः मुहावरे का शाब्दिक अर्थ न लेकर उसका भावार्थ ग्रहण करना चाहिए।
प्रमुख मुहावरे व उनका अर्थ:
● अक्ल पर पत्थर पड़ना – बुद्धि भ्रष्ट होना।
● अरहर की टट्टी गुजराती ताला – छोटी वस्तु के लिए अधिक व्यय करना।
● अधजल गगरी छलकत जाय – ओछे व्यक्ति का इतरा कर चलाना।
● अंतर के पट खोलना – विवेक से काम लेना।
● अंधे की लकड़ी – एकमात्र सहारा।
● अंग-अंग ढीला होना – शिथिल होना।
● अंधे के हाथ बटेर लगना – किसी वस्तु का अनायास मिलना।
● आंख उठाकर भी न देखना – ध्यान तक न देना।
● आकाश से बाते करना – बहुत ऊँचा होना।
● आँख के अंधे, गांठ के पुरे – धनी परन्तु मुर्ख।
● आँख का नीर ढल जाना – निर्लज्ज हो जाना।
● आँखों में गड़ना – मन में खटकना।
● आधा तितर आधा बटेर – बेमेल तथा बेढंगा होना।
● आपे में न रहना – सुध खो देना।
● अपना उल्लू सीधा करना – स्वार्थ सिद्ध करना।
● आये थे हरी भजन को उतन लगे कपास – विशेष कार्य को छोड़कर किसी अन्य कार्य में अलग जाना।
● इलायची बांटना – दावत देना।
● उलटी माला फेरना – अनिष्ट की कामना करना।
● ऊंट के मुह में जीरा – जरुरत से बहुत कम।
● एक ही थैली के चट्टे बट्टे होना – सबका एक समान होना।
● एड़ी चोटी जोर लगाना – बहुत परिश्रम करना।
● औंधी खोपड़ी – निपट मुर्ख।
● ओखली में सिर देने के बाद क्या डरना – कठिन काम को शुरू करने के लिए कष्ट सहन करना पड़ता है।
● कलई खुलना – सच्चाई का पता लगाना।
● कान का कच्चा होना – सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करना।
● कान में तेल डालना – कुछ न सुनना।
● कान भरना – चुगली करना।
● कच्चे घड़े से पानी भरना – ठीक ढंग से काम न करना।
● कान फूंकना – दीक्षित करना।
● काठ का उल्लू होना – बड़ा मुर्ख होना।
● काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती – छल कपट का व्यवहार हमेशा नहीं चलता।
● कलेजा पसीज जाना – द्रवित होना।
● कौड़ी न पूछना – निकम्मा होना।
● कोई तीर घाट तो कोई बीर घाट – ताल मेल न होना।
● खिचड़ी पकाना – किसी षड़यंत्र की तैयारी करना।
● खेत रहना – युद्ध में शहीद हो जाना।
● खून पानी होना – कोई असर न होना।
● खरगोश के सिंग निकलना – असंभव होना।
● गाँठ बांधना – अच्छे से याद रखना।
● गागर में सागर भरना – विस्तृत बातों को संक्षिप्त में कहना।
● गूलर का फूल होना – कभी भी दिखाई न देना।
● गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास – बिना सिद्धांत के व्यक्ति।
● गए थे रोजा छुड़ाने, नमाज गले पड़ी – उपकार करने के बदले स्वयं दुःख भोगना।
● घड़ी में तोला घड़ी में माशा – जरा सी बात पर खुश और नाराज होना।
● घुटने टेकना – हार मान लेना।
● घड़ो पानी पड़ना – लज्जित होना।
● घाट-घाट का पानी पीना – बहुत अनुभवी होना।
● चोर के पैर नहीं होते – दोषी व्यक्ति अपने आप फंसता है।
● चाँद पर थूकना – निर्दोष पर कलंक लगाना।
● चांदी का ऐनक लगाना – किसी न किसी प्रकार प्रतिष्ठा बनाये रखना।
● छाती पर मूंग दलना – पास रहकर दुःख देना।
● जले पर नमक छिड़कना – दुःख पर और दुःख देना।
● जूतियों में दाल बांटना – लड़ाई-झगड़ा होना।
● जस दूल्हा तस बनी बारात – सभी साथी एक जैसे।
● जहाँ न पंहुचे रवि वहां पंहुचे कवि – कवि बहुत कल्पनाशील होता है।
● जौहर खुलना – भेद का पता लगना।
● जूतम पैजार – लड़ाई झगडा होना।
● झंडे गाड़ना – अधिकार जमाना।
● टोपी उछालना – निरादर करना।
● टूट चाप नहीं जुरै रिसाने – नुकसान होने पर क्रोध करना व्यर्थ है।
● टिप्पस लगाना – सिफारिस करना।
● ठन-ठन गोपाल – खोखला।
● ठीकरा फूटना – किसी के सिर झूठा आरोप लगाना।
● ठीकरा फूटना – किसी के सर झूठा आरोप लगाना।
● डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग पकाना – अलग-अलग मत रखना।
● ढाक के तीन पात – सदा एक-सी दशा में रहना।
● ढपोर शंख - बेवकूफ।
● तीन-तेरह होना – भाग जाना।
● तीर मारना – बड़ा काम करना।
● तितांजलि देना – पूर्णतः मुक्त होना।
● तिल का ताड़ बनाना – छोटी सी बात को बढ़ा देना।
● तोते की तरह आँखे फेरना – पुराने संबंधो के एकदम भुला देना।
● तन पर नहीं अलबत्ता पान खाए अलबत्ता – झूठा दिखावा करना।
● तू डाल-डाल मै पात पात – चालाकी का जवाब चालाकी से देना।
● तालु में जीभ न लगना – चुप न रहना।
● तूती बोलना – अमिट प्रभाव होना।
● तेली का बैल होना – बुरी तरह काम में लगाना।
● तीन तेरह होना – तितर बितर होना।
● थाली का बैगन होना – अस्थिर चित का व्यक्ति होना।
● दांत खट्टे करना – हरा देना।
● दांतों तले उंगुली दबाना – हैरान होना।
● दिन को दिन तथा रात को रात न समझाना – सुख का त्याग कर देना।
● धूल फांकना – मारे-मारे फिरना।
● न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी – असंभव कार्य।
● नीम हकीम खतरे जान – अल्प ज्ञान हानिकारक होता है।
● नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना।
● नाक रगड़ना – विनती करना।
● न उधो का लेना न माधव का देना – अपने काम से काम।
● नाक बच जाना – इज्जत बच जाना।
● नौ दिन चले अढ़ाई कोष – धीरे-धीरे चलना।
● नयी जमीन तोड़ना – अनूठा प्रयोग।
● पौ बारह होना – अत्यधिक लाभ लेना।
● पानी न मांगना – तत्काल मर जाना।
● फंदा लगना – धोखा हो जाना।
● बाल की खाल निकलना – बड़ी छानबीन करना।
● बहती गंगा में हाथ धोना – अवसर का लाभ उठाना।
● बांसों उछलना – प्रसन्न होना।
● भांड झोकना – व्यर्थ समय नष्ट करना।
● मुठ्ठी गरम करना – रिश्वत देना।
● माथा ठनकना – अनिष्ट की आशंका होना।
● मखमली जुते मारना – मीठी बातों से लज्जित करना।
● मांगे भीख पूछे गाँव की जमा – अपनी असलियत भूलकर बात करना।
● यथा नाम तथा गुण – जैसा नाम वैसा काम।
● राम सियार – कपटी व्यक्ति।
● राम नाम जपना पराया माल अपना – धोखे से धन जमा करना।
● रीढ़ टूटना – निराश हो जाना।
● लोहा मानना – महत्व स्वीकार करना।
● लुटिया डूब जाना – पुर्णतः हार जाना।
● लंगोटी में फाग – दरिद्रता में आनंद मनाना।
● विष के घूंट पीना – कटु वचन सह कर लेना।
● सब्जबाग दिखाना – झूठा आश्वासन देना।
● सिर उठाना – विद्रोह करना।
● सिर खाना – अवांछित संवाद।
● सिर आँखों पर बिठाना – ह्रदय से सेवा सत्कार करना।
● सर पर पांव रखकर भागना – तुरंत भाग जाना।
● सोने में सुगंध – सुन्दर वस्तु में और गुण होना।
● समुद्र मंथन करना – कठोर परिश्रम करना।
● सावन के अंधे को हरा ही हरा नजर आता है – सुखी को सब जगह सुख ही नजर आता है।
● सुबह शाम करना – टाल मटोल करना।
● सिर से पानी गुजर जाना – सहनशीलता की सीमा टूट जाना।
● सूर्य को दीपक दिखाना – महान व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना।
● शैतान की आंत – बहुत लम्बी।
● हाँथ-पांव मारना – असफल प्रयत्न करना।
● हाथ ऊँचा होना – दान के लिए मन में उदारता का भाव होना।
● हथेली पर सरसों उगाना – असंभव कार्य करना।
● हंसुए की व्याह में खुरपी का गीत – असंगत बातें करना।
● हाथ उठाकर देना – स्वेच्छा से किसी को कुछ देना।
मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। मुहावरे के प्रयोग से वाक्य में व्यंग्यार्थ उत्पन्न होता है। अतः मुहावरे का शाब्दिक अर्थ न लेकर उसका भावार्थ ग्रहण करना चाहिए।
प्रमुख मुहावरे व उनका अर्थ:
● अक्ल पर पत्थर पड़ना – बुद्धि भ्रष्ट होना।
● अरहर की टट्टी गुजराती ताला – छोटी वस्तु के लिए अधिक व्यय करना।
● अधजल गगरी छलकत जाय – ओछे व्यक्ति का इतरा कर चलाना।
● अंतर के पट खोलना – विवेक से काम लेना।
● अंधे की लकड़ी – एकमात्र सहारा।
● अंग-अंग ढीला होना – शिथिल होना।
● अंधे के हाथ बटेर लगना – किसी वस्तु का अनायास मिलना।
● आंख उठाकर भी न देखना – ध्यान तक न देना।
● आकाश से बाते करना – बहुत ऊँचा होना।
● आँख के अंधे, गांठ के पुरे – धनी परन्तु मुर्ख।
● आँख का नीर ढल जाना – निर्लज्ज हो जाना।
● आँखों में गड़ना – मन में खटकना।
● आधा तितर आधा बटेर – बेमेल तथा बेढंगा होना।
● आपे में न रहना – सुध खो देना।
● अपना उल्लू सीधा करना – स्वार्थ सिद्ध करना।
● आये थे हरी भजन को उतन लगे कपास – विशेष कार्य को छोड़कर किसी अन्य कार्य में अलग जाना।
● इलायची बांटना – दावत देना।
● उलटी माला फेरना – अनिष्ट की कामना करना।
● ऊंट के मुह में जीरा – जरुरत से बहुत कम।
● एक ही थैली के चट्टे बट्टे होना – सबका एक समान होना।
● एड़ी चोटी जोर लगाना – बहुत परिश्रम करना।
● औंधी खोपड़ी – निपट मुर्ख।
● ओखली में सिर देने के बाद क्या डरना – कठिन काम को शुरू करने के लिए कष्ट सहन करना पड़ता है।
● कलई खुलना – सच्चाई का पता लगाना।
● कान का कच्चा होना – सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करना।
● कान में तेल डालना – कुछ न सुनना।
● कान भरना – चुगली करना।
● कच्चे घड़े से पानी भरना – ठीक ढंग से काम न करना।
● कान फूंकना – दीक्षित करना।
● काठ का उल्लू होना – बड़ा मुर्ख होना।
● काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती – छल कपट का व्यवहार हमेशा नहीं चलता।
● कलेजा पसीज जाना – द्रवित होना।
● कौड़ी न पूछना – निकम्मा होना।
● कोई तीर घाट तो कोई बीर घाट – ताल मेल न होना।
● खिचड़ी पकाना – किसी षड़यंत्र की तैयारी करना।
● खेत रहना – युद्ध में शहीद हो जाना।
● खून पानी होना – कोई असर न होना।
● खरगोश के सिंग निकलना – असंभव होना।
● गाँठ बांधना – अच्छे से याद रखना।
● गागर में सागर भरना – विस्तृत बातों को संक्षिप्त में कहना।
● गूलर का फूल होना – कभी भी दिखाई न देना।
● गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास – बिना सिद्धांत के व्यक्ति।
● गए थे रोजा छुड़ाने, नमाज गले पड़ी – उपकार करने के बदले स्वयं दुःख भोगना।
● घड़ी में तोला घड़ी में माशा – जरा सी बात पर खुश और नाराज होना।
● घुटने टेकना – हार मान लेना।
● घड़ो पानी पड़ना – लज्जित होना।
● घाट-घाट का पानी पीना – बहुत अनुभवी होना।
● चोर के पैर नहीं होते – दोषी व्यक्ति अपने आप फंसता है।
● चाँद पर थूकना – निर्दोष पर कलंक लगाना।
● चांदी का ऐनक लगाना – किसी न किसी प्रकार प्रतिष्ठा बनाये रखना।
● छाती पर मूंग दलना – पास रहकर दुःख देना।
● जले पर नमक छिड़कना – दुःख पर और दुःख देना।
● जूतियों में दाल बांटना – लड़ाई-झगड़ा होना।
● जस दूल्हा तस बनी बारात – सभी साथी एक जैसे।
● जहाँ न पंहुचे रवि वहां पंहुचे कवि – कवि बहुत कल्पनाशील होता है।
● जौहर खुलना – भेद का पता लगना।
● जूतम पैजार – लड़ाई झगडा होना।
● झंडे गाड़ना – अधिकार जमाना।
● टोपी उछालना – निरादर करना।
● टूट चाप नहीं जुरै रिसाने – नुकसान होने पर क्रोध करना व्यर्थ है।
● टिप्पस लगाना – सिफारिस करना।
● ठन-ठन गोपाल – खोखला।
● ठीकरा फूटना – किसी के सिर झूठा आरोप लगाना।
● ठीकरा फूटना – किसी के सर झूठा आरोप लगाना।
● डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग पकाना – अलग-अलग मत रखना।
● ढाक के तीन पात – सदा एक-सी दशा में रहना।
● ढपोर शंख - बेवकूफ।
● तीन-तेरह होना – भाग जाना।
● तीर मारना – बड़ा काम करना।
● तितांजलि देना – पूर्णतः मुक्त होना।
● तिल का ताड़ बनाना – छोटी सी बात को बढ़ा देना।
● तोते की तरह आँखे फेरना – पुराने संबंधो के एकदम भुला देना।
● तन पर नहीं अलबत्ता पान खाए अलबत्ता – झूठा दिखावा करना।
● तू डाल-डाल मै पात पात – चालाकी का जवाब चालाकी से देना।
● तालु में जीभ न लगना – चुप न रहना।
● तूती बोलना – अमिट प्रभाव होना।
● तेली का बैल होना – बुरी तरह काम में लगाना।
● तीन तेरह होना – तितर बितर होना।
● थाली का बैगन होना – अस्थिर चित का व्यक्ति होना।
● दांत खट्टे करना – हरा देना।
● दांतों तले उंगुली दबाना – हैरान होना।
● दिन को दिन तथा रात को रात न समझाना – सुख का त्याग कर देना।
● धूल फांकना – मारे-मारे फिरना।
● न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी – असंभव कार्य।
● नीम हकीम खतरे जान – अल्प ज्ञान हानिकारक होता है।
● नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना।
● नाक रगड़ना – विनती करना।
● न उधो का लेना न माधव का देना – अपने काम से काम।
● नाक बच जाना – इज्जत बच जाना।
● नौ दिन चले अढ़ाई कोष – धीरे-धीरे चलना।
● नयी जमीन तोड़ना – अनूठा प्रयोग।
● पौ बारह होना – अत्यधिक लाभ लेना।
● पानी न मांगना – तत्काल मर जाना।
● फंदा लगना – धोखा हो जाना।
● बाल की खाल निकलना – बड़ी छानबीन करना।
● बहती गंगा में हाथ धोना – अवसर का लाभ उठाना।
● बांसों उछलना – प्रसन्न होना।
● भांड झोकना – व्यर्थ समय नष्ट करना।
● मुठ्ठी गरम करना – रिश्वत देना।
● माथा ठनकना – अनिष्ट की आशंका होना।
● मखमली जुते मारना – मीठी बातों से लज्जित करना।
● मांगे भीख पूछे गाँव की जमा – अपनी असलियत भूलकर बात करना।
● यथा नाम तथा गुण – जैसा नाम वैसा काम।
● राम सियार – कपटी व्यक्ति।
● राम नाम जपना पराया माल अपना – धोखे से धन जमा करना।
● रीढ़ टूटना – निराश हो जाना।
● लोहा मानना – महत्व स्वीकार करना।
● लुटिया डूब जाना – पुर्णतः हार जाना।
● लंगोटी में फाग – दरिद्रता में आनंद मनाना।
● विष के घूंट पीना – कटु वचन सह कर लेना।
● सब्जबाग दिखाना – झूठा आश्वासन देना।
● सिर उठाना – विद्रोह करना।
● सिर खाना – अवांछित संवाद।
● सिर आँखों पर बिठाना – ह्रदय से सेवा सत्कार करना।
● सर पर पांव रखकर भागना – तुरंत भाग जाना।
● सोने में सुगंध – सुन्दर वस्तु में और गुण होना।
● समुद्र मंथन करना – कठोर परिश्रम करना।
● सावन के अंधे को हरा ही हरा नजर आता है – सुखी को सब जगह सुख ही नजर आता है।
● सुबह शाम करना – टाल मटोल करना।
● सिर से पानी गुजर जाना – सहनशीलता की सीमा टूट जाना।
● सूर्य को दीपक दिखाना – महान व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना।
● शैतान की आंत – बहुत लम्बी।
● हाँथ-पांव मारना – असफल प्रयत्न करना।
● हाथ ऊँचा होना – दान के लिए मन में उदारता का भाव होना।
● हथेली पर सरसों उगाना – असंभव कार्य करना।
● हंसुए की व्याह में खुरपी का गीत – असंगत बातें करना।
● हाथ उठाकर देना – स्वेच्छा से किसी को कुछ देना।