Keep it up...      How are you today!!!

सन्धि

सन्धि का अर्थ है– मिलना। दो वर्णो या अक्षरों के परस्पर मेल से उत्पन्न विकार को 'सन्धि' कहते हैं। 




सन्धि

निकटवर्ती वर्णो के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह सन्धि कहलाता है।

जैसे– विद्या + आलय = विद्यालय।

यहाँ विद्या शब्द का ‘आ’ वर्ण और आलय शब्द के ‘आ’ वर्ण में सन्धि होकर ‘आ’ बना है।

सन्धि–विच्छेद: सन्धि शब्दो को अलग–अलग करके सन्धि से पहले की स्थिति में लाना ही सन्धि विच्छेद कहलाता है।

सन्धि का विच्छेद करने पर उन वर्णो का वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है।

जैसे– हिमालय = हिम + आलय।

परस्पर मिलने वाले वर्ण स्वर, व्यंजन और विसर्ग होते हैं, अतः इनके आधार पर ही सन्धि तीन प्रकार की होती है–
  • 1. स्वर सन्धि
  • 2. व्यंजन सन्धि
  • 3. विसर्ग सन्धि
1. स्वर सन्धि :- दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-सन्धि कहते हैं। दो स्वरों का परस्पर मेल संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्रायः पाँच प्रकार से होता है–
  • i.  अ वर्ग = अ, आ
  • ii.  इ वर्ग = इ, ई
  • iii. उ वर्ग = उ, ऊ
  • iv. ए वर्ग = ए, ऐ
  • v.  ओ वर्ग = ओ, औ।

स्वर–सन्धि के 5 प्रकार होते हैं–

1.दीर्घ सन्धि :– ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आये तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई, और ऊ हो जाते हैं।

अ/आ + अ/आ = आ
  • दैत्य + अरि = दैत्यारि
  • कदा + अपि = कदापि
इ/ई + इ/ई = ई
  • नदी + ईश = नदीश
  • श्री + ईश = श्रीश
उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ
  • भानु + उदय = भानूदय
  • लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऋ/ॠ + ऋ/ॠ = ॠ
  • मातृ + ऋण = मात्ॠण

2. गुण सन्धि :– अ या आ के बाद यदि ह्रस्व इ, उ, ऋ अथवा दीर्घ ई, ऊ, ॠ स्वर हो, तो उनमें सन्धि होकर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है, इसे गुण सन्धि कहते हैं। जैसे–

अ/आ + इ/ई = ए
  • देव + इन्द्र = देवेन्द्र
  • न + इति = नेति 
अ/आ + उ/ऊ = ओ
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • लोक + उक्ति = लोकोक्ति
अ/आ + ऋ = अर्
  • ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
  • महा + ऋण = महर्ण

3. वृद्धि सन्धि :– अ या आ के बाद यदि ए, ऐ हो तो इनके स्थान पर ‘ऐ’ तथा अ, आ के बाद ओ, औ हो तो इनके स्थान पर ‘औ’ हो जाता है। ‘ऐ’ तथा ‘औ’ स्वर ‘वृद्धि स्वर’ कहलाते हैं अतः इस सन्धि को वृद्धि सन्धि कहते हैं।

अ/आ + ए/ऐ = ऐ
  • मत + ऐक्य = मतैक्य
  • सदा + एव = सदैव
अ/आ + ओ/औ = औ
  • जल + ओध = जलौध
  • महा + औषधि = महौषधि

4. यण सन्धि :– जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। इसे यण् सन्धि कहते हैं।

यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई या उ/ऊ स्वर तो 'य्' या 'व्' में बदल जाते हैं किन्तु जिस व्यंजन के ये स्वर लगे होते हैं, वह सन्धि होने पर स्वर–रहित हो जाता है।

जैसे– अभि + अर्थी = अभ्यार्थी, तनु + अंगी = तन्वंगी।

यहाँ अभ्यर्थी में ‘य्’ के पहले 'भ्' तथा तन्वंगी में ‘व्’ के पहले 'न्' स्वर–रहित हैं। प्रायः य्, व्, र् से पहले स्वर–रहित व्यंजन का होना यण् सन्धि की पहचान है।

इ/ई + अ = य
  • यदि + अपि = यद्यपि
  • परि + अटन = पर्यटन
इ/ई + आ = या
  • वि + आप्त = व्याप्त
  • परि + आवरण = पर्यावरण
इ/ई + उ/ऊ = यु/यू
  • अभि + उदय = अभ्युदय
  • अति + उक्ति = अत्युक्ति
इ/ई + ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
  • प्रति + एक = प्रत्येक
  • वि + ओम = व्योम
उ/ऊ + अ/आ = व/वा
  • तनु + अंगी = तन्वंगी
  • अनु + अय = अन्वय
उ/ऊ + इ/ई/ए = वि/वी/वे
  • पू + इत्र = पवित्र
  • धातु + इक = धात्विक
ऋ + अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु
  • मातृ + अर्थ = मात्रर्थ
  • पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
5. अयादि सन्धि :– ए, ऐ, ओ, औ के बाद यदि कोई असमान स्वर हो, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है। इसे अयादि सन्धि कहते हैं।

ए/ऐ + अ/इ = अय/आय/आयि
  • ने + अन = नयन
  • गै + अक = गायक
  • ओ/औ + अ = अव/आव
  • पो + अन् = पवन
  • पौ + अक = पावक
ओ/औ + इ/ई/उ = अवि/अवी/आवु
  • नौ + इक = नाविक
  • रो + इ = रवि

2. व्यंजन सन्धि :- व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन के मेल को व्यंजन सन्धि कहते हैं। व्यंजन सन्धि में एक स्वर और एक व्यंजन या दोनोँ वर्ण व्यंजन होते हैं। इसके अनेक भेद होते हैं। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं–

1. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् के बाद कोई स्वर, किसी भी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण आये तो प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।

'क्' का 'ग्' होना
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • वाक् + ईश = वागीश
‘च्’ का ‘ज्’
  • अच् + अन्त = अजन्त
  • अच् + आदि = अजादि
‘ट्’ का ‘ड्’
  • षट् + आनन = षडानन
  • षट् + यंत्र = षड्यंत्र
‘त्’ का ‘द्’
  • सत् + विचार = सद्विचार
  • सत् + आचार = सदाचार
इस नियम का अपवाद भी है जो इस प्रकार है–
  • त् + ड/ढ = त् के स्थान पर ड्
  • त् + ज/झ = त् के स्थान पर ज्
  • त् + ल् = त् के स्थान पर ल्
जैसे :-
  • उत् + डयन = उड्डयन
  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + लेख = उल्लेख
  • उत् + ज्वल = उज्ज्वल
  • उत् + लास = उल्लास
  • तत् + लीन = तल्लीन
  • जगत् + जननी = जगज्जननी
2. यदि किसी वर्ग के प्रथम (क्, च्, ट्, त्, प्) या तृतीय वर्ण के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) हो तो पहला या तीसरा वर्ण भी पाँचवाँ वर्ण हो जाता है-

प्रथम/तृतीय वर्ण + पंचम वर्ण = पंचम वर्ण
  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • उत् + मूलन = उन्मूलन
3. ‘त्’ या ‘द्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्/द्’ के स्थान पर ‘च्’, ‘ज्’ या ‘झ’ हो तो ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ्’ हो तो ‘ट्’, ‘ड्’ या ‘ढ’ हो तो ‘ड्’ और ‘ल’ हो तो ‘ल्’ हो जाता है-

त् + च/छ = च्च/च्छ
  • सत् + चरित्र = सच्चरित्र
  • जगत् + छाया = जगच्छाया
त्/द् + ज्/झ् = ज्ज/ज्झ
  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + ज्वल = उज्ज्वल
त् + ट/ठ = ट्ट/ट्ठ
  • तत् + टीका = तट्टीका
  • वृहत् + टीका = वृहट्टीका
त् + ड/ढ = ड्ड/ड्ढ
  • उत् + डयन = उड्डयन
  • जलत् + डमरु = जलड्डमरु
  • उत् + लेख = उल्लेख
  • उत् + लास = उल्लास
(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है-
  • सत् + भावना=सद्भावना
  • जगत् + ईश=जगदीश
  • सत् + धर्म=सद्धर्म
4. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ह’ आये तो उनके स्थान पर ‘द्ध’ हो जाता है-
  • उत् + हार = उद्धार
  • तत् + हित = तद्धित
उपर्युक्त सन्धियों का दूसरा रूप इस प्रकार प्रचलित है–
  • उद् + हार = उद्धार
  • तद् + हित = तद्धित
5. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘श्’ हो तो ‘त् या द्’ का ‘च्’ और ‘श्’ का ‘छ्’ हो जाता है-

त्/द् + श् = च्छ
  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • उत् + शृंखल = उच्छृंखल
6. यदि किसी भी स्वर वर्ण के बाद ‘छ’ हो तो वह ‘च्छ’ हो जाता है-

कोई स्वर + छ = च्छ
  • अनु + छेद = अनुच्छेद
  • स्व + छन्द = स्वच्छन्द
7. यदि ‘त्’ के बाद ‘स्’ (हलन्त) हो तो ‘स्’ का लोप हो जाता है-
  • उत् + स्थान = उत्थान
  • उत् + स्थित = उत्थित
8. यदि ‘म्’ के बाद ‘क्’ से ‘भ्’ तक का कोई भी स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है, या उसी वर्ग का पाँचवाँ अनुनासिक वर्ण बन जाता है-

म् + कोई व्यंजन = म् के स्थान पर अनुस्वार (ं ) या उसी वर्ग का पंचम वर्ण
  • सम् + चार = संचार/सञ्चार
  • सम् + धि = सन्धि/सन्धि
9. यदि ‘म्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘म्’ अपरिवर्तित रहता है-

म् + म = म्म
  • सम् + मति = सम्मति
  • सम् + मुख = सम्मुख
10. यदि ‘म्’ के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से कोई वर्ण आये तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार ( ं ) हो जाता है-

म् + य, र, ल, व, श, ष, स, ह = अनुस्वार ( ं )
  • सम् + योग = संयोग
  • सम् + वाद = संवाद
11. यदि ‘स’ से पहले अ या आ से भिन्न कोई स्वर हो तो स का ‘ष’ हो जाता है-

अ, आ से भिन्न स्वर + स = स के स्थान पर ष
  • वि + सम = विषम
  • नि + सेध = निषेध
अपवाद–
  • अनु + सरण = अनुसरण
  • अनु + स्वार = अनुस्वार
  • वि + स्मरण = विस्मरण
  • वि + सर्ग = विसर्ग
12. यदि ‘ष्’ के बाद ‘त’ या ‘थ’ हो तो ‘ष्’ आधा वर्ण तथा ‘त’ के स्थान पर ‘ट’ और ‘थ’ के स्थान पर ‘ठ’ हो जाता है-

ष् + त/थ = ष्ट/ष्ठ
  • आकृष् + त = आकृष्ट
  • उत्कृष् + त = उत्कृष्ट
  • सृष् + ति = सृष्टि
  • पृष् + थ = पृष्ठ
13. यदि ‘द्’ के बाद क, त, थ, प या स आये तो ‘द्’ का ‘त्’ हो जाता है-

द् + क, त, थ, प, स = द् की जगह त्
  • मृद् + तिका = मृत्तिका
  • विपद् + ति = विपत्ति
  • आपद् + ति = आपत्ति
  • तद् + पर = तत्पर
  • उद् + तर = उत्तर
14. यदि ‘ऋ’ और ‘द्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘द्’ का ‘ण्’ बन जाता है-
  • ऋद् + म = ण्म
  • मृद् + मय = मृण्मय
  • मृद् + मूर्ति = मृण्मूर्ति
15. यदि इ, ऋ, र, ष के बाद स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार, य, व, ह में से किसी वर्ण के बाद ‘न’ आ जाये तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है-

(i) इ/ऋ/र/ष + न= न के स्थान पर ण
(ii) इ/ऋ/र/ष + स्वर/क वर्ग/प वर्ग/अनुस्वार/य, व, ह + न = न के स्थान पर ण
  • प्र + मान = प्रमाण
  • नार + अयन = नारायण
  • परि + मान = परिमाण
  • तर + न = तरण
  • शोष् + अन् = शोषण
16. यदि सम् के बाद कृत, कृति, करण, कार आदि में से कोई शब्द आये तो म् का अनुस्वार बन जाता है एवं स् का आगमन हो जाता है-
  • सम् + कृत = संस्कृत
  • सम् + कृति = संस्कृति
  • सम् + करण = संस्करण
  • सम् + कार = संस्कार
17. यदि परि के बाद कृत, कार, कृति, करण आदि में से कोई शब्द आये तो सन्धि में ‘परि’ के बाद ‘ष्’ का आगम हो जाता है-
  • परि + कार = परिष्कार
  • परि + कृत = परिष्कृत
  • परि + कृति = परिष्कृति
3. विसर्ग सन्धि :- जहाँ विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग का लोप हो जाता है या विसर्ग के स्थान पर कोई नया वर्ण आ जाता है, वहाँ विसर्ग सन्धि होती है।

विसर्ग सन्धि के नियम निम्न प्रकार हैं–

1. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवाँ वर्ण या अन्तःस्थ वर्ण (य, र, ल, व) हो, तो ‘अः’ का ‘ओ’ हो जाता है-

अः + किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण, य, र, ल, व = अः का ओ
  • मनः + वेग = मनोवेग
  • मनः + बल = मनोबल
  • मनः + रंजन = मनोरंजन
  • तपः + बल = तपोबल
  • मनः + अनुभूति = मनोभूति
2. यदि विसर्ग से पहले और बाद में ‘अ’ हो, तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओऽ’ या ‘ओ’ हो जाता है तथा बाद के ‘अ’ का लोप हो जाता है-

अः + अ = ओऽ/ओ
  • यशः + अर्थी = यशोऽर्थी/यशोर्थी
  • मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल/मनोनुकूल
  • मनः + अभिराम = मनोऽभिराम/मनोभिराम
  • परः + अक्ष = परोक्ष
3. यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ से भिन्न कोई स्वर तथा बाद में कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है-

अ, आ से भिन्न स्वर + वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण/य, र, ल, व, ह = (:) का ‘र्’
  • दुः + बल = दुर्बल
  • आशीः + वाद = आशीर्वाद
  • निः + मल = निर्मल
  • दुः + गुण = दुर्गुण
  • निः + बल = निर्बल
4. यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग से पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है-
हृस्व स्वर(:) + र = (:) का लोप व पूर्व का स्वर दीर्घ
  • निः + रोग = नीरोग
  • निः + रज = नीरज
  • निः + रस = नीरस
  • निः + रव = नीरव
5. यदि विसर्ग के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट’ या ‘ठ’ हो तो ‘ष्’ तथा ‘त’, ‘थ’, ‘क’, ‘स्’ हो तो ‘स्’ हो जाता है-

विसर्ग (:) + च/छ = श्
  • निः + चय = निश्चय
  • निः + चल = निश्चल
  • निः + छल = निश्छल
  • अः + चर्य = आश्चर्य
विसर्ग(:) + ट/ठ = ष्
  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • निः + ठुर = निष्ठुर
विसर्ग(:) + त/थ = स्
  • मनः + ताप = मनस्ताप
  • दुः + तर = दुस्तर
  • निः + तेज = निस्तेज
  • निः + तार = निस्तार
  • नमः + ते = नमस्ते
अः/आः + क = स्
  • भाः + कर = भास्कर
  • पुरः + कृत = पुरस्कृत
  • नमः + कार = नमस्कार
6. यदि विसर्ग से पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद में क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है-

इः/उः + क/ख/प/फ = ष्
  • निः + कपट = निष्कपट
  • दुः + कर्म = दुष्कर्म
  • निः + काम = निष्काम
  • दुः + कर = दुष्कर
7. यदि विसर्ग के बाद श, ष, स हो तो विसर्ग ज्यों के तत्यों रह जाते हैं या विसर्ग का स्वरूप बाद वाले वर्ण जैसा हो जाता है-

विसर्ग + श/ष/स = (:) या श्श/ष्ष/स्स
  • निः + शुल्क = निःशुल्क/निश्शुल्क
  • दुः + शासन = दुःशासन/दुश्शासन
  • निः + सन्देह = निःसन्देह/निस्सन्देह
  • निः + संकोच = निःसंकोच/निस्संकोच
  • दुः + साहस = दुःसाहस/दुस्साहस
8. यदि विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नही होता है-

अः + क/ख/प/फ = (:) का लोप नही
  • अन्तः + करण = अन्तःकरण
  • प्रातः + काल = प्रातःकाल
  • पयः + पान = पयःपान
  • अधः + पतन = अधःपतन
  • मनः + कामना = मनःकामना
9. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और पास आये स्वरों में सन्धि नही होती है-

अः + अ से भिन्न स्वर = विसर्ग का लोप
  • अतः + एव = अत एव
  • पयः + ओदन = पय ओदन
  • रजः + उद्गम = रज उद्गम
  • यशः + इच्छा = यश इच्छा

          


Popular Posts