मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, क्रम, यति, गति, तुक, लय आदि नियमो से युक्त विशिष्ट पद्य रचना को छन्द या वृत्त कहते है.
छन्द
छन्द के तत्त्व :-
- 1. वर्ण
- 2. यति
- 3. तुक
- 4. मात्रा
- 5. गति
- 6. चरण
- 7. गण
1. वर्ण :- मुख से निकलने वाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निर्धारित चिन्ह वर्ण कहलाते है.
2. मात्रा :- वर्ण के उच्चारण में जो समय व्यतीत होता है उसे मात्रा कहते है.
3. गति :- पढ़ते समय कविता के स्पष्ट सुखद प्रवाह को गति कहते है.
4. यति :- छंदों में रुकने के स्थान को यति कहते है.
5. तुक :- छन्द के चरणों के अंत में एक समान उच्चारण वाले शब्दों के आने से जो ले उत्पन्न होता है उसे तुक कहते है.
6. शुभाक्षर :- शुभाक्षर 15 है –
क, ख, ग, घ, च, छ, ज, द, ध, न, य, ष, स, क्ष, ज्ञ.
7. अशुभाक्षर :- इन्हें दग्धाक्षर भी कहते है, इन्हें कविता में प्रारंभ में नहीं रखना चाहिए.
8. चरण :- छन्द में प्रायः 4 पंक्तियाँ होती है, पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दुसरे और चौथे चरण को सन चरण कहते है.
9. गण :- मात्राओ और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिए 3 वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता है.
गणों की संख्या 8 होती है-
गण
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मात्रा
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सूत्र
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प्रभाव
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उदाहरण
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यगण
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ISS
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यमाता
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शुभ
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यशोदा
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मगण
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SSS
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मातारा
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शुभ
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मायावी
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तगण
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SSI
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ताराज
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अशुभ
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तालाब
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रगण
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SIS
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राजभा
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अशुभ
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रामजी
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जगण
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ISI
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जभान
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अशुभ
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जलेश
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भगण
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SII
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भानस
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शुभ
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भारत
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नगण
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III
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नसल
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शुभ
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नगर
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सगण
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IIS
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सलगा
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अशुभ
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सरिता
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लघु और गुरु के नियम :-
लघु (I) :-
- लघु वर्ण एकमात्रिक होते है – अ, इ, उ आदि
- संयुताक्षर स्वयं लघु होते है – क्ष, त्र, ष आदि
- चन्द्रबिन्दु वाले वर्ण लघु माने जाते है – हँसना, फँसना आदि.
- हृस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते है – कि, कु आदि
- हलंत व्यंजन भी लघु मान लिए जाते है – अहम् आदि
- ‘ऑ’ वर्ण लघु माना जाता है.
- यदि किसी दीर्घ स्वर का उच्चारण शीघ्रता से हृस्व की तरह किया जाय तो उसे लघु मान लिया जाता है.
गुरु (S) :-
- दीर्घ वर्ण लघु वर्ण की तुलुना में दुगुना समय लेता है.
- संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण भी दीर्घ होते है यदि उनपर भर पड़ता है – दुष्ट, अक्षर आदि
- यदि संयुक्ताक्षर से नया शब्द प्रारंभ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता है – ‘वह भ्रष्ट है’
- विसर्ग से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते है – दुःख आदि.
- अनुस्वार से युक्त वर्ण गुरु माने जाते है – कंस, कंगन आदि.
- दीर्घ मात्राओ से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते है – कौन, काम, कैसे आदि.
- कभी-कभी चरण के अंत में लघु वर्ण भी विकल्पतः दीर्घ मान लिया जाता है.
लीला तुम्हारी अति ही विचित्र.
Note :- किसी ध्वनि का लघु या गुरु होना उसके उच्चारण में लिए गए समय पर निर्भर करता है.
छन्द मुख्यतः 3 प्रकार के होते है –
- 1. मात्रिक छन्द
- 2. वर्णिक छन्द
- 3. मुक्तक छन्द
1. मात्रिक छन्द
जिन छन्दों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। जैसे - दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई.
इसके मुखतः 3 भेद होते है – सम, अर्धसम, विषम.
मात्रिक छंद के प्रकार :-
a. दोहा :- दोहा अर्धसममात्रिक छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय,
जा तन की झाईं परे, स्याम हरित द्युति होय।
b. सोरठा :- सोरठा अर्धसममात्रिक छन्द है और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन ॥
c. चौपाई :- चौपाई सममात्रिक छंद है। इसमे 4 चरण होते है, इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं।
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
d. रोला :- रोला सममात्रिक छंद होता है। इसमे 4 चरण होते है, प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है, प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं के बाद यति होती है.
जीती जाती हुई ,जिन्होंने भारत बाजी।
निज बल से बल मेट, विधर्मी मुग़ल कुराजी।
जिनके आगे ठहर, सके जंगी न जहाजी।
है ये वही प्रसिद्ध, छत्रपति भूप शिवजी।
e. कुण्डलिया :- कुण्डलिया विषम मात्रिक छंद है। इसमे 6 चरण होते है प्रारंभ में एक दोहा और बाद में एक रोला जोडकर कुण्डलिया छन्द बनता है, पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है.
जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होता है।
रहिये लटपट काटि दिन, बरु घामें मां सोय।
छांह न वाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहै॥
कह 'गिरिधर कविराय छांह मोटे की गहिये।
पातो सब झरि जाय तऊ छाया में रहिये॥
f. हरिगीतिका :- यह सममात्रिक छन्द है इसमे 4 चरण होते है और प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है, और 16 और 12 मात्राओं पर यति होता है. प्रत्येक चरण के अंत में रगण (SIS) आना आवश्यक है.
खग-वृन्द सोता है अतः कल, कल नहीं होता वहाँ।
बस मन्द मारू का गमन की मौनखोता है जहाँ।
इस भाँति धीरे से परस्पर कह सजगता की कथा।
यों दीखते हैं। वृक्ष यों ही विश्व के प्रहरी यथा।
g. बरवै :- बरवै अर्द्ध सममात्रिक छन्द है इसमे 4 चरण होते है. पहले और तीसरे चरण में 12-12 तथा दुसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएँ होती है, दुसरे और चौथे चरण के अंत में ‘जगण’ होता है.
अवधि शिला का उर पर, था गुरु भार।
तिल-तिल काट रही थी, दृग जल-धार।।
2. वर्णिक छन्द
वर्णिक छन्द के प्रत्येक चरण का निर्माण वर्णों की एक निश्चित संख्या द्वारा होती है तथा लघु और गुरु का क्रम प्रत्येक चरण में समान होता है.
प्रिय-पति वह मेरा प्राणप्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा नेत्र-तारा कहाँ है॥
इसके मुखतः 3 भेद होते है – सम, अर्धसम, विषम.
प्रमुख वर्णिक छन्द :-
a. इंद्रवज्रा, b. उपेन्द्रवज्रा, c. वसन्त तिलका, d. मालिनी, e. सवैया, f. सुंदरी g. मनहर
a. इंद्रवज्रा :- इसमे 4 चरण होते है. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते है, जिनमे तगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु का क्रम होता है, चरण के अंत में यति होती है.
मैं जो नया ग्रंथ विलोकता हूँ,
मात मुझे सो नव मित्र-सा है।
देखें उसे मैं नित बार-बार,
मानो मिला मित्र मुझे पुराना।
b. उपेंद्रवज्रा :- इसमे 4 चरण होते है. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते है, जिनमे जगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु का क्रम होता है, चरण के अंत में यति होती है.
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै।
बिना विचारे यदि काम होगा।
कभी न अच्छा परिणाम होगा।
c. बसंत-तिलका :- इसमे 4 चरण होते है. इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते है, जिनमे तगण, भगण, जगण, जगण, गुरु, गुरु का क्रम होता है.
भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
नीला अनन्त-नभ निर्मल हो गया था।
थी छा गई ककुभ में अमिता सिताभा।
उत्फुल्ल सी प्रकृति थी प्रतिभात होती॥
d. मालिनी :- इसमे 4 चरण होते है. इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते है, जिनमे नगण, नगण, मगण, यगण, यगण का क्रम होता है. 8 और 7 वर्णों पर यति होती है.
प्रिय-पति वह मेरा प्राणप्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा नेत्र-तारा कहाँ है॥
e. सवैया :- 22 से 26 तक के वर्ण वृत्त सवैया कहलाते है, सवैया के मत्तगयंद, सुमुखी, सुंदरी आदि कई भेद होते है.
e.i. मत्तगयंद :- इसमे 4 चरण होते है प्रत्येक चरण में 7 भगण और 2 गुरु के क्रम से 26 वर्ण होते है, 12 और 11 वर्णों पर यति होती है. इसे ‘मालती’ अथवा ‘इन्दव’ भी कहते है.
सीस जटा,उर बाहु,बिसाल,विलोचन लाल,तिरीछी - सी भौहें।
तून सरासन बान धरे ,तुलसी बन - मारग में सुठि सोहै।
e.ii. सुंदरी :- इसमे 4 चरण होते है प्रत्येक चरण में 8 सगण और 1 गुरु के क्रम से 25 वर्ण होते है, 12 और 13 वर्णों पर यति होती है.
भुव भारहि संयुत राकस को गन जाए रसातल मैं अनुराग्यौ।
जग में यह शब्द समेतहि 'केसव' राज विभीषन के सिर जाग्यो।।
मय-दानव नंदिनी के सुख सों मिलि कै सिव के हिय के दुःख भाग्यौ।
सुर दुंदुभि सीसं गजा सर राम को रावन के सिर साथहि लाग्यो।।
e.iii. कवित्त-मनहर :- इसमे 4 चरण होते है प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है, 16 और 15 वर्णों पर यति होती है.
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात, रिमझिम बूंदें पड़ती थीं घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर, झिल्ली-झनकार यही मेरे मन भाई थी।
करने लगी मैं अनुकरण स्वनूपुरों से, चंचला थी चमकी, घनाली घहराई थी,
चौंक देखा मैंने, चुप कोने में खड़े थे प्रिय, माई! मुख-लज्जा उसी छाती में छिपाई थी!
3. मुक्तक छन्द
भक्तिकाल तक मुक्तक छन्द का अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं। मुक्तक छन्द नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछन्द गति और भावपूर्ण यति ही मुक्तक छन्द की विशेषता हैं।
वह आता
दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता,
दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।