शिक्षको द्वारा अध्ययन-अध्यापन को प्रभावशाली बनाने के लिए एवं छात्रो को अध्ययन के प्रति जागरूक तथा क्रियाशील बनाने हेतु जो तकनीके एवं विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है, वह शिक्षण सूत्र कहलाती है.
शिक्षण - सूत्र
शिक्षण सूत्र शिक्षण प्रक्रिया में विशेष विधियों का ज्ञान कराते है जिन्हें ध्यान में रखकर शिक्षण करके शिक्षक अपने छात्रो की उपलब्धि में गुणात्मक सुधार कर सकते है.
कामेनियस एवं हरबर्ट स्पेंसर आदि ने अपने अनुभवों के आधार पर शिक्षण के कुछ सामान्य नियम निर्धारित किये थे, जिन्हें बाद में शिक्षण सूत्रों के नाम से जाना जाने लगा.
शिक्षण के विभिन्न सूत्र :
1. सरल से जटिल को ओर
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
4. पूर्ण से अंश की ओर
5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष को ओर
7. विशिष्ट से सामान्य को ओर
8. विश्लेषण से संश्लेषण को ओर
9. मनोवैज्ञानिक क्रम से तर्कसंगत को ओर
1. सरल से जटिल को ओर :- इसके अनुसार छात्रो को पहले सरल फिर जटिल बातों को जानकारी देनी चाहिए जिससे पाठ व विषय में उनकी रूचि व ध्यान लगा रहे.
Ex: हासिल के जोड़ व घटाना सिखाने से पहले बच्चो को गिनती व साधारण जोड़, घटाना सिखाना चाहिए.
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर :- इसके अनुसार छात्रो को पहले वे बातें बतानी चाहिए जिन्हें वह जानता है फिर विषयवस्तु पर आना चाहिए जिन्हें वह नहीं जानता है क्योंकि सर्वथा नवीन तथ्य बच्चो के लिए कठिन होते है. इसके लिए शिक्षक को पढ़ने से पूर्व छात्रो का पूर्वज्ञान अवश्य जान लेना चाहिए.
Ex: हिंदी में शब्दों का ज्ञान कराने से पहले वर्णमाला की जानकारी करानी चाहिए जैसे : क से कमल, कलम, ख से खरगोश, खत आदि.
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर :- इस सूत्र को मूर्त से अमूर्त की ओर के नाम से भी जाना जाता है. शैशवावस्था में छात्र अमूर्त को नहीं समझ पाते है अतः छोटे बच्चो को पढ़ाते समय प्रारंभ में केवल मूर्त वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए और उनकी सहायता से सूक्ष्म बातों को बताना चाहिए.
Ex: गणित में जोड़, घटाना बताने के लिए गेंद, गोली, कंकड़ आदि का प्रयोग किया जा सकता है.
4. पूर्ण से अंश की ओर :- इस सूत्र का आधार गेस्टालवाद (अवयवीवाद) है. गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिको के अनुसार हम किसी वस्तु को उसके पूर्ण रूप में ही देखते है उसके अंशो को नहीं. यह सूत्र काव्य शिक्षण में विशेष रूप से लागू होता है जिसमे सम्पूर्ण कविता का पाठ करना उचित होता है. उसके बाद एक-एक पंक्ति का अर्थ बताना चाहिए. क्योंकी प्रारंभ में एक-एक पंक्ति पढ़ाने से कविता की मूल भावना बच्चो की समझ में नहीं आता है.
Ex: भूगोल में पहले मानचित्र दिखाकर फिर राज्यों का ज्ञान करना चाहिए.
5. अनिश्चित से निश्चित की ओर :- प्रारंभ में परिपक्वता के अभाव में बच्चो को किसी घटना, तथ्य, वस्तु का स्पष्ट व निश्चित ज्ञान नहीं होता है और कल्पना की अधिकता के कारण वह उनके बारे में अपने मन में कुछ विचार बना लेते है जो अस्पष्ट व कई बार गलत भी होते है. अतः शिक्षक को चाहिए की वह उसके अनिश्चित ज्ञान को स्पष्ट व निश्चित करे तथा गलत धारणाओं में सुधार करे.
Ex: सौरमंडल, ग्लोब पर किसी देश-प्रदेश, स्थल के बारे में छात्रो के विचार प्रायः अस्पष्ट व अनिश्चित होते है अतः शिक्षक को वहां के मानचित्र, चार्ट का प्रयोग करके बच्चो के ज्ञान को निश्चित व स्पष्ट कर सकता है.
6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष को ओर :- इस सूत्र के अनुसार छात्रो को पहले उनके द्वारा देखी गयी वस्तुओं के बारे में बताना चाहिए अर्थात उन्हें पहले वर्त्तमान की जानकारी कराई जाये फिर उसी की सहायता से भुत या भविष्य की, क्योंकि जो चीजे हमारी समक्ष होती है उनका ज्ञान हम आसानी से प्राप्त कर लेते है.
Ex: सामाजिक विषय में ग्लोब, माडल, चित्र आदि के माध्यम से संसार के विविध भागो के बारे में बताया जा सकता है.
7. विशिष्ट से सामान्य को ओर :- इस सूत्र को ‘दृष्टान्त से सिद्धांत’ की ओर ले जाना भी कहते है. आगमन विधि में भी इसी सूत्र का प्रयोग किया जाता है. इस सूत्र के अनुसार शिक्षक को छात्रों के सामने पहले किसी प्रकरण से सम्बंधित कई उदहारण प्रस्तुत करने चाहिए फिर उन्ही की सहायता से सिद्धांत व नियम स्पष्ट करना चाहिए.
Ex: हिंदी व्याकरण में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण आदि को पढ़ाते समय पहले इनसे सम्बंधित उदहारण प्रस्तुत करना चाहिए उसके बाद परिभाषा को स्पष्ट करना चाहिए.
8. विश्लेषण से संश्लेषण को ओर :- किसी समस्या के ऐसे टुकड़े करना कि जिनको जोड़ने पर समस्या का हल तैयार हो जाये, विश्लेषण कहलाता है. और खंडो में प्राप्त ज्ञान को जब जोड़कर समझाया जाता है तो उसे संश्लेषण कहते है.
इस सूत्र के अनुसार किसी तथ्य का जानकारी पहले समग्र रूप में कराकर फिर उसके विविध भागो को व्याख्या व विश्लेषण द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए तत्पश्चात उन भागो या खंडो को आपस में जोड़कर पूरी जानकारी कराकर निष्कर्ष तक पहुंचना चाहिए.
9. मनोवैज्ञानिक क्रम से तर्कसंगत को ओर :- बालक की शिक्षा उसकी, रुचियों, क्षमताओं के अनुसार प्रदान करनी चाहिए और जैसे-जैसे उसके ज्ञान का विकास होता जाए, उसे विषय का तार्किक व क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान किया जाये.
Ex: बच्चो को इतिहास में मुगकालीन स्थापत्य की जानकारी देना है तो बच्चो को पहले स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों के चित्रों को दिखाकर चर्चा करे.